Wednesday, March 22, 2017


... तुम्हें फूलों से बहुत प्यार है न, तभी तो वह नन्हा सा पौधा लेकर आये थे तुम। तमाम सारे पौधों के बावजूद, सफेद कनेर का फूल। ना जाने क्यूं तुम्हें अपनी ओर खींचता था वह। देखो,आज वह नन्हा सा पौधा पेड़ बन चुका है और किसी एक डाली पर नहीं बल्कि पूरा पेड़ फूलों से लदा है।। फूल कुछ यूँ बिखरें हैं कि इन्हें देखते ही तुम्हारी मनमोहक मुस्कान याद आ जाती है। वो इसे रोपते हुए तुम्हारी आँखों की चमक याद आ जाती है। कैसे तुमने इसे बेहद प्यार से रोपा फिर पानी की जगह दूध से सींचा।। यूँ जैसे उसे जीवन देने की पहली खुराक थी वो। इसके बाद हर रोज़ उसके साथ तुम्हारा बात करना।। उससे ही उसका हालचाल लेना यह पूछना कि कैसा है वह? और बिखरी पत्तियों को देखकर तुम्हारा भी उदास हो जाना..... लेकिन अगले ही पल पौधे की नई शाख को देखकर तुम मुस्कुरा उठते...इस उम्मीद में कि उसका परिवार बढ़ने लगा है। एक पौधे में नई शाखा के जन्मनें का सुख तुम्हारे चेहरे पर देखते ही बनता... आज महीनों बाद यह कनेर का पौधा पूरी तरह से पेड़ बन चुका है।। इसकी शाखाएं चारों तरफ फैली हैं... और बिखरें हैं सफ़ेद रंग के फूल, जो आने-जाने वाले हर व्यक्ति का ध्यान अपनी तरफ खींचते हैं... लेकिन फिर कभी यह उदास होने लगता है, शायद इसे भी अब तुम्हारी कमी खलती है... शायद इसे जीवन संचार करने वाले को देखने की आस है शायद......

Thursday, March 16, 2017

साहिल दरिया की बात...


दरिया बहुत खामोश था, साहिल ने चुप्पी तोड़नी चाही और एक सवाल किया? क्यूं है तकलीफ तुम्हें, किस बात पे ये आँसू? क्या कुछ खो गया या कुछ दूर हुआ? कुछ तो कहो ये कैसी उदासी? सन्नाटे में दरिया की आवाज गूंजी, एक अधूरापन साल रहा है, कभी अपना तो कभी बेगाना सा लग रहा है। हालत तो अपनी पहले भी ऐसी ही थी फिर क्यूँ और कैसे ये अब तकलीफ दे रहा है? जब भी इससे दूर जाने की कोशिश करता हूँ, ये और दर्द देने लगता है। अब तुम ही कहो साहिल कैसे क्या करना है? साहिल- ठीक कहा तुमनें कि अधूरापन जब भी होता है बहुत तकलीफ देता है। मुझे भी बहुत तकलीफ होती है, तुम्हारे साथ रहकर। तुम्हारे साथ होना भी ना होने जैसा है।। चलो फिर एक नई शुरुआत करते हैं, अजनबी बनकर ना तुम मुझे पहचानना और ना मैं तुम्हें हाँ लेकिन जब कभी तुमसे राब्ता हो ही जाये, तुम नज़रों के सामने आ ही जाओ तो तुम नज़रें ना फेरना बस इतना वादा, लेकिन पूरा करने का! देकर जाओ। चलो फिर एक नई शुरुआत करते हैं, अजनबी बनकर।। बोलो अब कैसी ख़ामोशी? दरिया-  ठीक कहते हो तुम, चलो अजनबी बन जाते हैं। नज़रें ना फेरने का वादा भी कर जाते हैं।। लेकिन जब भी जुड़ेगा मेरा नाम तेरे नाम के साथ क्या तब भी तुम यूँ ही अजनबी रहोगे? जब भी उठेंगे कुछ सवाल मेरे और तुम्हारे लिए कि साथ रहके भी हम साथ क्यूँ न हुए? क्या तब भी तुम अजनबी ही रहोगे? तुम तो ऐसे ना थे? क्या बदला मेरे और तेरे दरम्यान? साहिल- कुछ खास नही बस तुम मुझे परखने लगे और एक मशहूर शायर हुए हैं, उन्होंने फ़रमाया है कि 'परखना मत परखने में कोई अपना नहीं रहता,  किसी भी आईने में देर तक चेहरा नही रहता।।'  बस तुम मुझे परखने लगे और मैं बेगाना हो गया।। वरना तुम्हारी और मेरी दास्तां तो सदियों से अधूरी है,  तुम भी खुश थे इस अधूरे साथ पर फिर अचानक  सवाल आज क्यूँ उठने लगे।।।।।। और मुस्कुराते हुए साहिल ने फिर फेर ली नज़रें
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उसका रूठना