दरिया बहुत खामोश था, साहिल ने चुप्पी तोड़नी चाही
और एक सवाल किया?
क्यूं है तकलीफ तुम्हें, किस बात पे ये आँसू?
क्या कुछ खो गया या कुछ दूर हुआ?
कुछ तो कहो ये कैसी उदासी?
सन्नाटे में दरिया की आवाज गूंजी, एक अधूरापन साल रहा है,
कभी अपना तो कभी बेगाना सा लग रहा है।
हालत तो अपनी पहले भी ऐसी ही थी फिर क्यूँ और कैसे ये अब तकलीफ दे रहा है?
जब भी इससे दूर जाने की कोशिश करता हूँ, ये और दर्द देने लगता है।
अब तुम ही कहो साहिल कैसे क्या करना है?
साहिल-
ठीक कहा तुमनें कि अधूरापन जब भी होता है बहुत तकलीफ देता है।
मुझे भी बहुत तकलीफ होती है, तुम्हारे साथ रहकर।
तुम्हारे साथ होना भी ना होने जैसा है।।
चलो फिर एक नई शुरुआत करते हैं, अजनबी बनकर
ना तुम मुझे पहचानना और ना मैं तुम्हें
हाँ लेकिन जब कभी तुमसे राब्ता हो ही जाये,
तुम नज़रों के सामने आ ही जाओ तो तुम नज़रें ना फेरना
बस इतना वादा, लेकिन पूरा करने का! देकर जाओ।
चलो फिर एक नई शुरुआत करते हैं, अजनबी बनकर।।
बोलो अब कैसी ख़ामोशी?
दरिया-
ठीक कहते हो तुम, चलो अजनबी बन जाते हैं।
नज़रें ना फेरने का वादा भी कर जाते हैं।।
लेकिन जब भी जुड़ेगा मेरा नाम तेरे नाम के साथ
क्या तब भी तुम यूँ ही अजनबी रहोगे?
जब भी उठेंगे कुछ सवाल मेरे और तुम्हारे लिए
कि साथ रहके भी हम साथ क्यूँ न हुए?
क्या तब भी तुम अजनबी ही रहोगे?
तुम तो ऐसे ना थे?
क्या बदला मेरे और तेरे दरम्यान?
साहिल-
कुछ खास नही बस तुम मुझे परखने लगे और एक मशहूर शायर हुए हैं, उन्होंने फ़रमाया है कि 'परखना मत परखने में कोई अपना नहीं रहता,
किसी भी आईने में देर तक चेहरा नही रहता।।'
बस तुम मुझे परखने लगे और मैं बेगाना हो गया।। वरना तुम्हारी और मेरी दास्तां तो सदियों से अधूरी है,
तुम भी खुश थे इस अधूरे साथ पर फिर अचानक
सवाल आज क्यूँ उठने लगे।।।।।।
और मुस्कुराते हुए साहिल ने फिर फेर ली नज़रें
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