Friday, November 5, 2021

वो ख्वाब सा है....कुछ पूरा और बहुत कुछ अधूरा

कुछ पूरा और बहुत कुछ अधूरा

हर रंग जैसे उस अधूरे से मिलकर पूरे हो जाते हैं
वही जो कभी ख्वाब तो कभी ख्याल बन जाता है
कभी बहुत पास तो अमूमन बहुत दूर हो जाता है
हां वो कुछ ही पूरा है और बहुत कुछ अधूरा है
और वही अधूरा न मालूम रफ्ता-रफ्ता कब
मेरी ज़िंदगी का अरसे से खाली पड़ा कोना भर गया 
औऱ फिर मुझे कुछ पूरा तो बहुत कुछ अधूरा कर गया
वो मेरे साथ कुछ यूं जिया कि
कभी बाग में जैसे संग ही मेरे फूलों और कलियों से बात करता हो। 
कभी यूं कि जैसे खराब मौसम में भी बसंत की बयार लेकर आता हो।
वो ख्वाब सा है
जो कुछ पूरा और बहुत कुछ अधूरा है।
कभी देर रात आसमान पर संग तारों की गिनतियां करता हो
कभी यूं कि जैसे दिन की शुरुआत और अंत बस उस तक ही सिमट जाते हों। 
वो ख्वाब सा है 
कुछ पूरा और बहुत कुछ अधूरा। 


काली परछाई

 


 .....सृष्टि ने अभी-अभी कॉलेज खत्‍म क‍िया था। आगे कुछ पढ़ने की इच्‍छा नहीं थी। उसकी फैमिली में मां के अलावा बस एक बड़ा भाई था जो प्रशासनिक अध‍िकारी था। वह अक्‍सर ही सृष्टि को आगे पढ़ने को कहता थे लेकिन उसकी मर्जी जानकर उसने भी कहना बंद कर द‍िया और उसकी शादी के लिए एक अच्‍छे से लड़के की तलाश में लग गया। सृष्टि को बागवानी बहुत पसंद थी। इसलिए अक्‍सर ही वह खद ही माली काका के साथ पौधे पसंद करने नर्सरी जाती थी। एक शाम वह नर्सरी से लौट रही थी कि अचानक ही उसकी तेज स्‍पीड की कार एक स्‍कूटी से जा टकराई। सृष्टि गाड़ी से उतरी तो देखा यह तो उसकी फ्रेंड आराध्‍या  थी। हंसते हुए उसे गले लगाया और बोली यार तू कभी तो स्‍कूटी ठीक से चलाया कर.... आराध्‍या  ने कहा कि ये तू अपने ड्राइवर को भी कह सकती है सृष्टि की बच्‍ची....  अरे बस भी कर यार.... चल स्‍कूटी साइड में कर और मेरे साथ चल कॉफी पीने चलते हैं। तभी हर तरफ से मैडम रास्‍ता क्‍यों रोका है? साइड में हो जाइए... जैसी आवाजें तेज हो चुकी थीं। सृष्टि  ने कहा आराध्‍या  साइड हो ले वरना एक्‍सीडेंट में तो कुछ नहीं हुआ पर ये भीड़ जरूर पीट देगी। इस पर दोनों ही ख‍िलखिला उठीं और गाड़ी साइड में लगा दी। सृष्टि ने ड्राइवर से कहा क‍ि वह कार कहीं पार्क करके आराध्‍या  की स्‍कूटी को सर्विस सेंटर तक ले जाए। इस पर आराध्‍या  ने पूछा तू तूने अभी तक ड्राइव‍िंग नहीं सीखी। नहीं यार... सृष्टि बोली। अच्‍छा तो मतलब लाइफ पार्टनर के इंतजार में.... सृष्टि  बोली हां... शायद कुछ ऐसा ही... आराध्‍या  ने कहा तो तेरा वही सपना अभी भी है। हां और नहीं तो क्‍या... लेक‍िन चल न अभी स्‍कूटी की चाभी ड्राइवर को दे दे और हम कैफे चलते हैं। वहां ढेर सारी बातें करेंगे।

अरे यार सृष्टि क‍ितना चलाएगी। पहले ही तेरी कार की टक्‍कर से मेरे पैर की हालत खराब है। ऑटो पर तू बैठेगी नहीं ..... और क‍ितना पैदल चलाएगी यार? अरे बाबा तू भूल गई क्‍या अपना फेवरट कैफे... ओ हो यार... तो तू उधर चल रही है। हां ... कॉफी तो वही बेस्‍ट है यार.. पता है दो साल पहले जब कॉलेज खत्‍म हुआ था तब आई थी यहां। तू भी शहर से बाहर चली गई तो मैं रह गई अकेली। तेरे स‍िवा कोई दूसरा नहीं है मेरे पास जो कॉफी के साथ मेरी इन चांद-तारों वाली कविताओं को सुन सके। अच्‍छा तो मैं ही म‍िली तुझे बलि का बकरा.... कहकर आराध्‍या  जोर से हंस पड़ी। ठीक है तो रहने दे चलते हैं यहां से... सृष्टि ने यूं ही नाराजगी जाहिर की। फिर दोनों ने एक-दूसरे को देखा और खिलखिला उठीं। सृष्टि  और आराध्‍या  कॉलेज की मशहूर जोड़ी थी। दोस्‍ती की मिसाल थे दोनों। लेकिन आराध्‍या  की डॉक्‍टर बनने की तमन्‍ना उसे बंगलुरू खींच ले गई और सृष्टि  को तो अलग ही दुनिया की तलाश थी... तो वह देहरादून में ही रहकर उस दुनिया के सपने सजाने लगी। खैर....
 

सृष्टि  को अकेलेपन से कभी भी बेचैनी नहीं होती थी। उसे यह वक्‍त बेहद पसंद था। आखिर यही वह समय होता था जब वह अपनी बालकनी में पड़े झूले पर बैठकर हर‍ियाली देखते हुए कव‍िताओं की पंक्तियां गढ़ा करती थी। लेकिन अक्‍सर ही वह न जाने क‍िससे बातें करती थी। इस बात का पता तब चला जब एक द‍िन उसकी मां ने बालकनी में अकेली बैठी सृष्टि  को खिलख‍िलाकर हंसते हुए देखा। पहले तो उन्‍हें लगा शायद वह क‍िसी से फोन पर बात कर रही होगी। लेकिन जब सामने ही डाइन‍िंग टेबल पर उसका फोन देखा तो हैरान रह गईं। क्‍योंकि उनके बंगले के आस-पास सौ मीटर तक कोई दूसरा बंगला नहीं था क‍ि जहां क‍िसी से बात करते हुए वह हंसती-मुस्‍कुराती। उसके चारो तरफ हर‍ियाली ही हर‍ियाली थी। लेकिन अगले ही पल उन्‍हें लगा शायद कुछ पढ़कर ख‍िलख‍िला उठी होगी। वह अक्‍सर ही ऐसा करती है कभी टीवी देखते हुए तो कभी कोई क‍िताब पढ़ते हुए। लेकिन परदे के करीब पहुंचकर उन्‍होंने देखा क‍ि सृष्टि  तो बिल्‍कुल अकेले बैठी थी। उसके पास न ही फोन था और न ही कोई क‍िताब। बस हाथ में काफी मग था और वह न जानें क्‍या-क्‍या बोले जा रही थी। खुद ही बोलती फिर खुद ही हंसने भी लग जाती। लेकिन जैसे ही उन्‍होंने पर्दा हटाकर सृष्टि  को आवाज दी वह चुप हो गई। मां ने पूछा किससे बाते कर रही थी सृष्टि ? वह बोली बातें... कहां मां, क‍िसी से तो नहीं..... मां भी हैरान रह गईं लेकिन अगले ही पल उन्‍हें लगा शायद उम्र के चलते ये उनका ही वहम था। उन्‍होंने भी बात टाल दी।

...भइया दो स्‍ट्रॉन्‍ग कॉफी लाना.... शक्‍कर कम ... हां दीदी .. याद है आपकी कॉफी पास आकर वेटर बोला। सृष्टि  मुस्‍कुराकर बोली दो साल हो गए भइया आप भूले नहीं। अरे कैसे भूल जाते दी... आपकी इतनी कव‍िताएं जो सुनी हैं... अब नहीं लिखतीं क्‍या आप? सृष्टि  कुछ कहती क‍ि आराध्‍या  तपाक से बोल उठीं.. नहीं भइया अब तो मैडम केवल शादी के सपने देख रही हैं। अरे .... क्‍या बोल रही है.. अच्‍छा दीदी आपकी शादी होने वाली है? नहीं भइया ये तो पागल है, आप जानते हैं न, कुछ भी बोलती है। पर आप जल्‍दी कॉफी ले आइए न... बहुत वक्‍त हो गया आपकी कॉफी प‍िए हुए। जी दीदी.. अभी लाया आपके टेस्‍ट वाली कॉफी.. कहते हुए वेटर चला गया। आराध्‍या  ने सृष्टि  की लाइफ के पुराने पन्‍नों पर अपनी आदत की पेन चलाई और पूछ बैठी तो मैडम की लाइफ पार्टनर की खूबियों वाली फरमाइश में कुछ और बातें जुड़ीं या अभी उतनी ही हैं। क्‍या यार... तू भी.. बिल्‍कुल नहीं बदली न .. नहीं यार... तेरे लिए बदल सकती हूं क्‍या? क्‍यों नहीं? इतनी बड़ी डॉक्‍टर जो बन गई है। अच्‍छा सुन ये बता तू पागलों की डॉक्‍टर है न....... मतलब कैसे पागल आते हैं तेरी क्लिन‍िक पर। तेरे जैसे... आराध्‍या  ने बोला.. मेरे जैसे अच्‍छा तब तू पूरा द‍िन कविताएं ही सुनती रहती होगी। मतलब जॉब की जॉब और फ्री का ऐंटरटेनमेंट भी.. जलवे हैं तेरे.. कहकर सृष्टि  ख‍िलख‍िला उठी और बोली सुन न अगर मैं पागल हो गई तो तू ही मेरा इलाज करना... और सुन मुझे पागलखाने मत भेजना.... अरे .... कुछ भी .. सृष्टि  क्‍या यार... तू कभी तो सीर‍ियस हुआ कर .. अच्‍छा उससे क्‍या होगा? कुछ नहीं तेरा तो कुछ भी नहीं हो सकता..... 

दोनों की प्‍यार भरी नोंकझोंक की बीच वेटर कॉफी लेकर आ गया।

उधर आराध्‍या  का फोन बजता है... मैडम क्‍या आज के बाकी सारे अपॉइंटमेंट कैंसल कर दें... लंबी सांस लेते हुए आराध्‍या  ने कहा हां... ओके मैडम... फोन कट चुका था। सामने बेड पर सृष्टि  लेटी थी, जिसे अभी-अभी आराध्‍या  ने बेहोशी का इंजेक्‍शन दिया था। वह एकटक सृष्टि  को ही देखती जा रह‍ी थी। बार-बार उसे वह कैफे की मुलाकात याद आ रही थी तभी क‍िसी ने उसके कंधे पर हाथ रखा। आराध्‍या  पीछे मुड़ी तो देखा उसका पति था स‍िद्धार्थ। क्‍या हुआ कब से फोन कर रहा हूं.. न ही कॉल उठाती हो और न  ही क‍िसी मेसेज का जवाब दे रही हो? और रो क्‍यों रही हो क्‍या हुआ? कुछ बताओगी आराध्‍या .... वह एकदम चुपचाप बस रोए ही जा रही थी तभी स‍िद्धार्थ ने उसे अपनी बाहों में भर लिया और गले लगकर आराध्‍या  फूट-फूटकर रोई। स‍िद्धार्थ क्‍या हम इसे अपने घर ले चल सकते हैं? क‍िसे?....  ये जो बेड पर पेशेंट है.... हां ये तुम्‍हारे लिए पेशेंट है लेकिन मेरी इकलौती दोस्‍त है ये। हम दोनों ने एक-दूसरे के साथ क्‍या कुछ शेयर नहीं क‍िया लेकिन इसे आज इस हालत में देखूंगी कभी ये नहीं सोचा था? स‍िद्धार्थ इसे यहां छोड़ द‍िया तो इसके घर वाले इसकी जान ले लेंगे। प्‍लीज इसे अपने घर ले चलें। हां..हां क्‍यों नहीं? लेकिन इनके घरवालों से बात तो कर लो। किससे बात कर लूं  स‍िद्धार्थ? कोई कुछ नहीं सुनेगा और न ही कुछ समझेगा। तुम क्‍या कह रही हो आराध्‍या  मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है। लेकिन फिलहाल घर चलते हैं। आराम से बैठकर बात करेंगे। हम्‍म...आराध्‍या  ने अटेंडेंट को आवाज दी और कहा मैडम को एम्‍बुलेंस में मेरे घर ड्राप कर दो।

घर पहुंचकर बेहद शांत थी आराध्‍या ... बस एकटक सृष्टि  को देखे ही जा रही थी। उसे पुरानी हर बात याद आ रही थी जो कभी सृष्टि  ने उससे शेयर की थी। .... अच्‍छा तो तुझे ऐसा पति चाहिए जो तुझे नौकरी की इजाजत दे। है न... पर सुन मुझे न ऐसी लाइफ ही नहीं चाहिए। अच्‍छा तो कैसी चाहिए आराध्‍या  ने सृष्टि  से पूछा? सुन बता तो दूं लेकिन तू मेरा मजाक उड़ाएगी... अरे नहीं बाबा... बता न ... पक्‍का प्रॉमिस कर पहले आराध्‍या  की बच्‍ची.. चल किया....  अब तो बता दे नानी... पता है मैं न बहुत ही सिंपल लाइफ जीना चाहती हूं.... सृष्टि  ने कहा.. अच्‍छा तो ये कौन सी नई बात है। सभी चाहते हैं। यार तू मेरी सुनेगी या ऐसे ही बीच में टपकती रहेगी। अरे बाबा नाराज मत हो.... मैं चुप हूं तेरे प्रिंस चार्मिंग वाले सपने सुनने को... सुना न सृष्टि  प्‍लीज...नहीं सुनाऊंगी... मतलब नहीं सुनाऊंगी ... अरे यार अब मान भी जाओ... अच्‍छा ठीक है पर बीच में मत टपकना.... हां बाबा.. तू बता... 


आराध्‍या  मैं न पोस्‍ट ग्रेजुएशन के बाद आगे पढ़ने-लिखने जैसा कुछ नहीं करना चाहती। मैं चाहती हूं कि कॉलेज खत्‍म करते ही मेरी शादी हो जाए। लेकिन क‍िसी ऐसे-वैसे से ही नहीं बल्कि मेरा प्रिंस चार्मिंग न लाखों में एक हो। जो मुझे बेइंतहा प्‍यार करे। मेरी हर सुबह उससे शुरू और मेरी हर शाम उसपर ही खत्‍म। मतलब वो न मेरी आंखें देखकर  मेरे द‍िल का हाल समझ जाए। मेरी मुस्कुराहट के पीछे छिपी तकलीफ और खुशी का फर्क समझ पाए। कभी यूं ही सर्द रातों में एक-दूसरे का हाथ थामें हम आइसक्रीम खाने निकल जाएं। तो कभी लॉन्‍ग ड्राइव पर सड़क क‍िनारे झोपड़ी वाली चाय की चुस्कियां लेते हुए एक-दूसरे को न‍िहारें... ओ हो... क्‍या बात है मैडम... सृष्टि आप तो छिपी रुस्‍तम न‍िकलीं। आज समझ आया आपकी रोमांटिक कव‍िताओं का राज... क्‍या यार आराध्‍या  तू फिर शुरू हो गई। अब मैं कुछ नहीं बताऊंगी। अरे यार... सॉरी ... बोल न ये क‍ितना रोमांटिक है यार.. ऐसा लग रहा है जैसे कोई फिल्‍म देख रही हूं.. छेड़ना बंद करेगी तू.. तब तो कुछ बोलूं  सृष्टि  ने कहा... हां बता अब नहीं बोलूंगी...  अच्‍छा तो सुन... मैं चाहती हूं मेरी मांग में सिंदूर उनके ही हाथों से स‍जे। लाइफ में क‍ितनी भी भागमभाग क्‍यों न हो लेकिन की कॉफी हम एक साथ ही प‍िएं। मतलब वो लम्‍हा बस हमारा हो... जहां मैं और वो एक-दूसरे के साथ द‍िन की खूबसूरत शुरुआत कर रहे हों... फिर शाम को उनके आने की दस्‍तक और हमारी चाय रेडी... क्‍या बात है सृष्टि ... यार ये न बहुत ही खूबसूरत है.. तू तो वुड बी पर क‍िताब ही लिख डाल.. कहकर आराध्‍या  जोर से हंसी और सृष्टि  ने कुछ भी न... कहते हुए शर्म से अपनी नजरें झुका लीं....

डॉक्‍टर... डॉक्‍टर... क्‍या हुआ स‍िस्‍टर ऐसे क्‍यों च‍िल्‍ला रही हो? वो मैडम को होश आ गया है और वो बार-बार भागने की कोश‍िश कर रहीं हैं। अरे मैंने तुम्‍हें कहा था न कि उन्‍हें होश आते ही मुझे बताना कहकर आराध्‍या  तेजी से सृष्टि  की ओर भागी... क्‍या हुआ ड‍ियर... कहां जाना है तुम्‍हें? तुम कौन हो और ये मैं कहां हूं, मुझे जाने दो वरना वो लोग मुझे मार डालेंगे और वो मेरी दोस्‍त कहां गई। बुलाओ न उसे, अभी तो यहीं थीं, तुम क्‍यों आईं? तुम्‍हारे आने से ही वह चली गई। आराध्‍या  सृष्टि  को जोर से पकड़कर अपने गले से लगाती है और कहती है शांत हो जाओ सृष्टि ... यहां कोई नहीं है मेरे और तुम्‍हारे... नहीं... उसे बुलाओ अभी ...हां बुलाती हूं तुम जरा शांत तो हो... उधर आराध्‍या  ने सिस्‍टर को इशारा क‍िया क‍ि वह दूसरा इंजेक्‍शन लेकर आए। लेक‍िन जानें क्‍यों? वह सृष्टि  को यह दूसरा इंजेक्‍शन नहीं देना  चाहती थी। तो बस उसे गले से लगाए उसके बेड पर ही बैठ गई।

 थोड़ी देर में उसे ब्रेकफास्‍ट देकर कुछ दवाइयां दीं। क्‍योंकि अब तक वह समझ चुकी थी कि आखिर सृष्टि  को हुआ क्‍या है? इसी उलझन से न‍िकलने की कोशिश कर ही रही थी क‍ि अचानक उसे किसी ने आवाज दी आराध्‍या  तुम..... यहां .... मतलब मैं... तुम्‍हारे साथ... कैसे... कब.... सृष्टि  से अपना नाम सुनकर आराध्‍या  के मन में तो जैसे जान ही आ गई। मुस्‍कुरा उठी और बोली अरे मेरी नानी शांत हो जा.... एक साथ इतने सवाल......हम्‍म... गंभीर आवाज में बोली सृष्टि ... आराध्‍या  ने पूछा अरे क्‍या हुआ तुझे मेरी रोमांटिक लेखिका..... सृष्टि  ने कहा कुछ भी तो नहीं... यार मुझे घर छोड़ देगी क्‍या? कौन से घर? कहां? बिना कोई जवाब द‍िए सृष्टि  आराध्‍या  के गले लगकर फफक पड़ी। रोते-रोते ही बोली यार तू तो डॉक्‍टर है न मुझे ठीक कर देगी क्‍या... वो हैं न ..... कौन आराध्‍या  ने पूछा अरे वो वेद... मेरे पति.. कहते हैं क‍ि मुझपर भूत का साया है। मुझे भू‍त द‍िखाई देते हैं इसलिए कई जगहों पर मुझे झाड़-फूंक के लिए भी ले गए। आराध्‍या  वो लोग मुझे बहुत मारते हैं.... मुझे बचा ले न यार..... कोई भूत नहीं है.... पर कोई तो है शायद जो मेरे साथ हमेशा रहती है.... वो मुझे परछाई जैसी द‍िखती भी है। काली... बिल्‍कुल स्‍याह काली... पता है आराध्‍या  वो बिल्‍कुल वैसी बातें करती है, जैसी मैं कभी करती थी। जब तक वह मेरे साथ होती है न, मुझे सुकून रहता है। लेकिन जैसे ही कोई आता है वह न जाने कहां चली जाती है। ... अभी भी देखो वह द‍िख ही नहीं रही। तुम जाओगी तो आएगी शायद... सुनो मैं उसे बता दूंगी क‍ि तुम तो मेरी जान हो न ... तुम्‍हारे सामने आने से कैसा डर? सृष्टि ... सृष्टि  शांत.. शांत हो जाओ.. कोई नहीं है और कोई काली परछाई भी नहीं है तुम्‍हारे साथ.... समझने की कोशिश करो ये केवल तुम्‍हारा वहम है। 

नहीं, आराध्‍या  तुम भी झूठ कहती हो.... क्‍या तुम भी वेद और बाकी घरवालों की तरह उसे भूत समझ रहे हो। वो मेरी दोस्‍त है। जबसे तुम गई हो न वही तो है जो मेरे साथ-साथ है हर पल हर लम्‍हें.... मैं कहां गई थी सृष्टि ... मैं तो थी... क‍ितनी बार मैंने तुझे सोशल साइट्स पर मेसेज क‍िए लेकिन कभी कोई र‍िप्‍लाई ही नहीं आया तेरा... फोन क‍िया तो हमेशा ही बंद था... क्‍या हुआ था तेरे साथ सृष्टि ... कुछ बताएगी? नम आंखों से उसने आराध्‍या  की ओर देखा और अचानक ही न जानें क्‍या हुआ वह जोर-जोर से चीखने-च‍िल्‍लाने लगी। आराध्‍या  ने स‍िस्‍टर का द‍िया हुआ दूसरा इंजेक्‍शन न चाहते हुए भी लगा ही द‍िया... वहीं साइड सोफे पर बैठकर सृष्टि  के होश में आने का इंतजार करने लगी।  


आराध्‍या फिर से सोच रही थी क‍ि क्‍या हुआ था कल शाम.. कैसे सृष्टि  उसकी कार के आगे अचानक से आ गई थी। ये बरसों पहले हुई उस घटना के जैसे था जब उसकी स्‍कूटी सृष्टि  की कार से टकराई थी। लेकिन तब जैसी वह बात नहीं थी कल... तब वह दोनों खूब हंसे थे, मुस्‍कुराएं थे.... तमाम बातें शेयर की थीं दोनों ने.. लेकिन कल तो वह पागलों जैसी हालत में थी। क्‍या है यह सीजोफ्रेनिया?? नहीं ... नहीं ऐसा नहीं हो सकता.. सृष्टि  मैं कुछ ऐसा नहीं होने दूंगी। मेरी दोस्‍त हम फिर से साथ वही तेरी पसंद की स्‍ट्रॉन्‍ग कॉफी प‍िएंगे। तभी स‍िद्धार्थ आया और उन दोनों ने सृष्टि  का केस ड‍िस्‍कस क‍िया। तभी स‍िद्धार्थ ने कहा क‍ि ये तो ... सीजोफ्रेन‍िया है... आराध्‍या  और वह एक साथ ही बोल पड़े... स‍िद्धार्थ क्‍या सृष्टि  अब कभी ठीक नहीं हो पाएगी। प्‍लीज कुछ करो न, तुम जानते हो यह मेरी वही दोस्‍त है जिसके बर्थडे पर मैं और तुम देर रात आइसक्रीम खाने जाते थे। जबकि मुझे तो ऐसा कोई शौक भी नहीं था। हां हां याद है यार... लेक‍िन सृष्टि  का केस काफी सीर‍ियस हो चुका है। इसे मेंटल हॉस्पिटल में एडमिट करना ही ठीक होगा। तुम इनके घरवालों से बात कर लो.... नहीं सिद्धार्थ बिल्‍कुल भी नहीं...सृष्टि  जब होश में थी तो उसकी बातों से लगा क‍ि उन लोगों ने इसे बहुत परेशान क‍िया है। अब मैं इसे उन लोगों के भरोसे नहीं छोड़ सकती... इतना कहते ही आराध्‍या  फफक कर रो पड़ी.... क्‍या हुआ यार? हम उसे नहीं ले जाएंगे हॉस्पिटल डोंट पैन‍िक... प्‍लीज... नहीं सिद्धार्थ इसलिए नहीं रो रही... मैं तो सृष्टि  की उस बात को सोचकर रो रहीं हूं जब उसने कहा था क‍ि मैं पागल हो जाऊं तो मेरा इलाज तू ही करना और मुझे पागलखाने मत भेजना..... यार नहीं पता था क‍ि ये सच भी हो सकता है...

आराध्‍या ... आराध्‍या  ... सृष्टि   जोर-जोर से च‍िल्‍ला रही थी। उसके रूम में पहुंचते ही आराध्‍या  ने देखा क‍ि सृष्टि  ने पूरे कमरे को अस्‍त-व्‍यस्‍त करके रखा था। उसका हाथ पकड़कर अपने पास बिठाया और पूछा क्‍या हुआ सृष्टि .... उधर घर की मेड को सृष्टि   की पसंद की स्‍ट्रॉन्‍ग कॉफी बनाने को कहा... थोड़ी ही देर में कॉफी आ गई। तब तक वह बिल्‍कुल ही शांत थी। लेकिन कॉफी का पहला घूंट पीते ही वह फिर से रोने लगी और बोली आराध्‍या  मुझे बचा लो... प्‍लीज सेव मी... मैं पागल नहीं हूं... न ही कोई भूत है मुझपर... तुम समझ रही हो न .... बोलो न ... हां मैं जानती हूं मेरी दोस्‍त बिल्‍कुल ठीक है। .... कॉफी प‍ियो पहले और शांत हो जाओ.. प्‍लीज ये बताओ क्‍या हुआ था तुम्‍हारे साथ.... आराध्‍या  के गले लगकर सृष्टि  बोलती जा रही थी। जानती हो जब शादी हुई तो दो महीने तक सब ठीक था। लेकिन वेद अक्‍सर ही काम के स‍िलस‍िले में बाहर ही रहते थे तो मैं बिल्‍कुल अकेली पड़ गई थी। महीनों हो जाते थे उन्‍हें देखे हुए। जानती है मेरे प्रिंस चार्मिंग की तो सारी कल्‍पनाएं महज कल्‍पनाएं ही रह गईं यार..... 

उस दौरान पूरा द‍िन घर के काम-काज में बीत जाता फिर रात को अक्‍सर लगता जैसे कोई है मेरे आस-पास। मैंने कई बार वेद को कहा क‍ि मुझे क‍िसी मनोच‍िक‍ित्‍सक को द‍िखाना चाहिए। लेकिन हर बार यह कहकर टाल देते क‍ि अकेलापन मुझ पर हावी हो रहा है। फिर न जाने क्‍या हुआ? अचानक ही मुझे लगने लगा क‍ि मेरे कमरे में ही एक काली परछाई है जो हर वक्‍त मुझपर नजर रखती है। वो जैसे मेरे आने का इंतजार करती थी। पता है उसके साथ मैं बहुत खुश रहती थी। लेकिन जब भी उससे बातें करती तो घरवाले कहते क‍ि मुझपर क‍िसी भूत-प्रेत का साया है। तो मैंने उससे रात में बातें करनी शुरू कर दी। वह केवल तेरा भ्रम है सृष्टि  और कुछ नहीं ...आराध्‍या  ने कहा... नहीं यार तू समझती नहीं है। वो है ... सृष्टि  ने कहा ... आराध्‍या  ने कहा नहीं... यह सुनकर सृष्टि  जोर से च‍िल्‍लाई वो है यार... वो है... आराध्‍या  ने कहा अच्‍छा ठीक है वह है ... पर तू आगे बता... सृष्टि  ने आगे बताना शुरू किया कि वेद को कंपनी की ओर से प्रमोशन मिल गया तो वह अमेर‍िका चले गए। 

तब आराध्‍या  ने पूछा तू क्‍यों साथ नहीं गई? अरे फैमिली को कौन देखता? तू तो जानती है क‍ि मेरे लिए पर‍िवार का होना क‍ितना जरूरी है। फिर वह तो हर महीने आते ही न.... यही सोचकर रुक गई। लेकिन कई महीने बीत गए और वो नहीं आए। काम ज्‍यादा था तो उन्‍हें टाइम ही नहीं मिल पा रहा था। इधर फोन पर भी बात नहीं हो पाती थी। लेकिन जानती है वो काली परछाई वाली दोस्‍त थी मेरे पास... हमेशा ही... लेकिन एक द‍िन....इतना कहकर सृष्टि  चुप हो गई... क्‍या हुआ था आराध्‍या  ने पूछा ... न जाने क्‍या सोचते हुए बोली क‍ि सासू मां मुझे एक बाबा के पास ले गईं वह मुझे बहुत मारते थे। कहते थे मुझपर भूत है। मैंने बहुत कहा ऐसा कुछ नहीं है लेक‍िन सासू मां ने मेरी एक न सुनीं और ये स‍िलस‍िला चलता रहा। एक द‍िन मैं क‍िसी तरह से वहां से जान बचाकर भागी.. इसके बाद का कुछ याद नहीं.... तब आराध्‍या  को समझ आया क‍ि अच्‍छा तो वही द‍िन था जब वह उसकी कार से टकराई थी। उसने सृष्टि  को कुछ दवाइयां दीं जिनसे वह सो सके और हॉस्पिटल भागी। 

वहां पहुंचकर उसने और स‍िद्धार्थ ने कई डॉक्‍टर से कंसल्‍ट क‍िया लेकिन सबने एक ही जवाब द‍िया कि सृष्टि  की स्‍टेज पर केवल दवाइयों से या घर पर रखने से काम नहीं चलेगा। उसे प्रॉपर देखरेख की जरूरत है। हो सकता है क‍ि कुछ सालों में वह नॉ‍र्मल लाइफ जीने लायक हो भी जाए और हो सकता है कि वह कभी ठीक न हो... लेकिन बेहतरी इसी में है कि उसे हॉस्पिटल में एडमिट करा द‍िया जाए।... नम आंखों से आराध्‍या  सिद्धार्थ के साथ घर पहुंची और फैसला लिया कि चाहे कुछ भी हो जाए लेकिन वह कभी भी अपनी दोस्‍त को मेंटल हॉस्पिटल में नहीं एडमिट करेगी। उसे अपने ही साथ रखेगी... उसने  सिद्धार्थ से कहा हम सृष्टि  को यहीं रखेंगे... और देखना आप... एक द‍िन मेरी रोमांटिक कविताओं वाली दोस्‍त पूरी तरह से ठीक हो जाएगी। वह फिर से चांद-तारों पर कव‍िताएं लिखेगी.. वह फिर से मेरे छेड़ने पर झूठी नाराजगी जाहिर करेगी। देखना आप  सिद्धार्थ.....वह फिर से मुस्‍कुराएगी।  सिद्धार्थ ने उसे अपनी बांहों में भरा और कहा जरूर होगा ऐसा....


फरेब... तुम्‍हें खोने का डर जरा सा

 

तुम मेरा प्रेम नहीं हो लेकिन तुमसे मेरा नेह का नाता था। तुम्‍हें याद भर करने से तुमसे बात हो जाती थी। उसका नाम जपते-जपते उम्र गुजरने को है लेकिन वो सच्‍चे इश्‍क वाली कसक आज भी द‍िल में है। मेरे बेहद सीधे-साधे द‍िल के साथ उसकी द‍िमाग वाली केमिस्‍ट्री निभ नहीं पाई। हां लेकिन मेरे दिल ने तब तक उफ्फ नहीं की जब तक क‍ि अपनी आह की धड़कने मेरे द‍िमाग तक पहुंचने से रोक सकता था। तुम सोच रहे होगे क‍ि एक बदद‍िमाग लड़की ऐसी बातें कैसे कर सकती है। है न..... बिल्‍कुल सही बात है ये... लेकिन जानते हो कि तुम्‍हारी फोन वाली शोहबत में द‍िल-द‍िमाग का फर्क तो मैं अच्‍छे से समझ गई थी। बात कुछ थी....  तो बस इतनी कि मैं अपने द‍िल के टूटने से शायद डरती थी। ऐसे तो मुझे यानी कि व‍िध‍ि को कभी 800 मीटर के ट्रैक पर दौड़ने से भी डर नहीं लगा। लेकिन तुम्‍हें खोने का डर जरा सा.... हां ठीक समझ रहे हो, था तो वह जरा सा ही.... लेकिन कुछ आकाश जैसा अनंत और सागर जितना गहरा। जिसका अंश- अंश मैं महसूस कर सकती थी। जिसकी बूंद-बूंद में मैं हर लम्‍हें भीगती थी। बरसों का साथ था अपना लेक‍िन याद के नाम पर हमारी.... नहीं ... नहीं .... केवल तुम्‍हारी मुलाकात की वो शाम ही थी मेरे पास... उससे स‍िवा कुछ था तो बस प्रेम की चाशनी में लिपटा तुम्‍हारा फरेब...


Saturday, June 19, 2021

हैपी फादर्स डे

 


.....भीड़ में अक्‍सर मैं अपने पापा का हाथ थाम लेती हूं ये जानते हुए भी क‍ि मेरा पहला कदम उन्‍होंने ही तो थामा था। फ‍िर उन्‍हें थामने की मेरी छोटी सी कोश‍िश पर उनकी मुस्‍कुराहट... जो शायद कहीं ये कहती हुई सी लगती है क‍ि बेटा 'मैं' आपका 'प‍िता' हूं। आपका पहला कदम मैंने ही तो थामा था। तब से लेकर आज तक जब कभी आप लड़खड़ाते हैं तो आपको ग‍िरने से पहले मैं ही तो संभालता हूं। हां लड़खड़ाने इसल‍िए देता हूं ताक‍ि तुम इस दुन‍िया में जीने के तरीके सीख सको। ठीक वैसे ही जैसे तुम्‍हारे पहले कदम शुरू हुए थे। वॉकर का सहारा छोड़कर ... मेरी फैली हुई बाहें देखकर तुम मेरी ओर बढ़े... तुम तब भी लड़खड़ाए थे लेक‍िन मुस्‍कुराते हुए मेरी ओर बढ़ रहे थे... तब भी तुम्‍हें ग‍िरने नहीं द‍िया तुम्‍हारी मुझ तक पहुंचने की जैसे ही स्‍पीड बढ़ी मेरी बाहों ने तुम्‍हें संभाल ल‍िया।....तो कुछ समझे बेटा आप... आज क्‍या उम्र के क‍िसी भी पड़ाव पर आप जब भी लड़खड़ाएंगे अपने पापा को अपने साथ पाएंगे। तो आपका हाथ थामने पर आपकी मुस्‍कुराहट में यही नहीं द‍िखता और भी बहुत कुछ द‍िखता है। 

मुझे यह भी साफ नजर आता है क‍ि आपकी आंखें यह देखकर और भी खुश हो जाती हैं क‍ि आपकी बेटी आज इतनी बड़ी हो गई है क‍ि वह भीड़ देखकर आपका हाथ थाम लेती है क‍ि कहीं आप न लड़खड़ा जाएं... मुझे यह खुशी और सुकून दोनों ही रूपों में नजर आता है। आपकी उसी मुस्‍कुराहट में मेरे पहले कदम से लेकर आज तक के हर कदम की झलक पल भर में आपकी आंखों में नजर आ जाती है।

....तो पापा ईश्‍वर से बस इतनी प्रार्थना है मेरे हर कदम पर आपका साथ और आशीर्वाद रहे.....हैपी फादर्स डे

Friday, February 19, 2021

वो अलविदा....


 ...उसे खुद से अलग करना इतना तो मुश्किल नहीं था फिर भी जब अलविदा कहने की घड़ी आई तो ये इतना आसान भी तो नहीं था..लेकिन मिहिका की आदत ही थी ऐसी कि ज़िद के आगे उसकी खुद की हँसने-मुस्कुराने की चाहत भी पीछे छूट जाती थी..कुछ याद रहता था तो बस एक ज़िद कि अब अलविदा कहना है.. सिद्धार्थ और मिहिका अरसे पुराने दोस्त थे लेकिन जब मिहिका ने उसके साथ को अलविदा कहा तो फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। नहीं ऐसा हरगिज़ नहीं कि इस ज़िद भरे फैसले से उसे तकलीफ नहीं हुई। इतनी हुई कि बयां करने बैठे तो आंसू नहीं थमते थे। कितनी ही बार वो ज़ार-ज़ार रोई। आईने के सामने खुद से बातें करते वक़्त सिद्धार्थ की बातें याद की कि मिहिका क्या ये अलविदा जरूरी है? क्या ज़िंदगी भर ये दोस्ती यूं ही नहीं चल सकती? क्यों तुम्हें हर समस्या का हल अलविदा कहना ही लगता है? क्यों बस खत्म करने की ज़िद पर आमादा हो जाती हो। लेकिन मिहिका चुप... एकदम चुप.. ऐसा नहीं कि उसके पास जवाब नहीं था। ये बस मिहिका का अपना ही तरीका था प्रॉब्लम्स को डील करने का। दरअसल मिहिका को लगता था कि कभी भी कोई भी रिश्ता झूठ की बुनियाद पर ज्यादा देर नहीं टिक सकता और जब कभी वह इस झूठ की मिलावट से ज्यादा तकलीफ में होती तो बस उन रिश्तों को अलविदा कह देती बिना कुछ और कहे.... और सामने वाले को यह केवल मिहिका की रिश्तों को तोड़ने की ज़िद समझ आती। कभी किसी ने मिहिका के अलविदा के पीछे छिपे दर्द को समझने की कोशिश नहीं की और मिहिका ने भी किसी को इस लायक नहीं समझा कि दिल की हर बात कह पाती। तो बस अलविदा के साथ ही सिद्धार्थ के साथ सब खत्म फिर भी ज़ेहन में सब बाकी सा था।

मिहिका को लगा था कि अलविदा की फेहरिस्त में सिद्धार्थ पहला और आखिरी नाम था क्योंकि उसके अलावा ज़िंदगी में कोई और इतना करीब नहीं था। दोस्तों की लिस्ट लंबी तो थी लेकिन मिहिका ने सबके लिए एक दायरा तय कर रखा था तो इस तरह उसका होना सबके लिए ज़रूरी था पर उसके लिए किसी का होना न होना मायने नहीं रखता था। तो बस अपने हरफनमौला अंदाज़ में अपने में मस्त मिहिका की ज़िंदगी कभी पटरी तो कभी बेपटरी दौड़े जा रही थी। और इसी बीच एक ऐसा स्टेशन आ गया जहां उसे कुछ लंबे वक्त के लिए ठहरना था और ये ठहराव उसे फिर से सिद्धार्थ की भूली-बिसरी यादों से दो-चार कर देगा इसका उसे कतई अंदाज़ा नहीं था। वो तो बस मस्त मगन एक कलीग कम फ्रेंड से वाबस्ता थी। धीरे-धीरे वो कलीग से हटकर केवल दोस्त बन गया मिहिका को भी इसका पता नहीं चला। उसे वो बेगाना सा दोस्त अब खुद सा लगता था, उसकी बातें ऐसी होती थीं कि उसके साथ का वक़्त कब खत्म हो जाता पता ही नहीं चलता था... 

...शायद इसलिए उसका उदास होना मीहिका को बिल्कुल पसंद नहीं था। बल्कि वो तो उसके जीवन की सारी प्रॉबलम्स को  चुटकियों में दूर कर देना चाहती थी। कभी मंदिर में मन्नते मांगकर तो कभी उसको कोई ताकीद देकर। कुल मिलाकर उसका हँसना-मुस्कुराना मिहिका को अच्छा लगता था। और वह भी तो मिहिका ज्यादा बोले तो एकदम चुप हो जाता और न बोले तो उसे चिढ़ाने के लिए कुछ भी बोलता। तब चिढ़कर मिहिका भी बोलना शुरू कर देती। बड़ी प्यारी सी बॉन्डिंग हो गयी थी दोनों के बीच कुछ ही दिनों में। धीरे-धीरे कुछ बरस बीत गए और दोनों अब एक-दूसरे को अच्छा दोस्त कहने और महसूस करने लगे। दोनों की दोस्ती में अच्छी बात यह थी कि दोनों को ही एक-दूसरे से कोई उम्मीद नहीं थी। तो फिर एक दूसरे में खामियां भी नज़र नहीं आती थीं। बस दोनों को एक साथ होना अच्छा लगता था। मिहिका अक्सर कहती थी कि वो दोस्ती की लिस्ट में शामिल अब आखिरी नाम है। तब उसे समझ नहीं आता था कि वह ऐसा क्यों कह रही है जबकि मिहिका ही जानती थी कि सिद्धार्थ के फरेब के बाद किसी से दोस्ती न करने का खुद से किया वादा जो उसने तोड़ा था, तो अब किसी और तकलीफ से गुजरने को वो बिल्कुल तैयार नहीं थी और न ही किसी को इतना हक़ देना चाहती थी जो उसकी ज़िंदगी में अपनी जगह बना ले। फिर भी जाने कब इस दोस्त ने अपनी जगह बना ही ली थी।

... मीहिका इस बात को भले ही मानने से इंकार करती थी पर सच यही था। लेकिन वक़्त ने एक और करवट ली और अब वह इस दोस्त को अलविदा कह रही थी। इस बार भी बहुत कुछ सोचा नहीं था... बस किसी एक बात की चुभन के चलते कह दिया था अलविदा। हालांकि इस बार दर्द पहले से बेपनाह था। क्योंकि इस रिश्ते में कोई उम्मीद तो नहीं थी लेकिन दोनों को एक दूसरे का साथ पसन्द था। कई-कई घण्टों बिना किसी बात के भी फोन पर बातें  हो जातीं और कई बार तो बस दोनों बिना किसी बात के भी खामोशी में भी एक साथ हो लेते। और तो और ऑफिस की बोरिंग मीटिंग में भी फोन पर दूसरी ओर वो साथ होता और दोनों  मिलकर खूब बिना सिर-पैर की बातें करते और खूब ठहाके लगाते। तो ऐसे रिश्ते को अलविदा कहना बहुत तकलीफ दे रहा था औऱ उससे भी ज्यादा उस एक झूठ की तकलीफ थी जो बयां नहीं की जा सकती थी।....

...लेकिन अपने उसी ज़िद के अंदाज़ में मिहिका ने अपने उस आखिरी दोस्त को कह ही दिया अलविदा... क्योंकि झूठ से बड़ा फरेब कोई और कुछ हो भी तो नहीं सकता था... फर्क बस इतना था कि इस बार जब अलविदा कहा तो दोनों ही चाहते थे कि अलविदा का ये आखिरी पल कुछ देर ठहर जाता। उसने तो कहा भी था कि क्या सबकुछ यूं ही नहीं चल सकता। क्या ये ज़रूरी है? इस बार भी वह चुप ही थी औऱ बीता वक़्त याद करके इतना ही बोल सकी 'हां।' अब फोन तो कट चुका था, अलविदा कहने का सुकून भी था लेकिन आँसू थे जो थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे जाने क्यों???   लेकिन उन्हीं आंसुओ के साथ नम आंखों से उसने फिर कभी किसी पर भरोसा न करने और किसी से दोस्ती न करने की शपथ भी ले ली थी.....


Friday, January 22, 2021

ज़िद...

ज‍िद पर हैं आज हवाएं और सर्दियों में बला की ये धूूूप
 न जानें कौन हारेगा और न जाने कौन अब जीतेगा.....


बहुत वक़्त हुआ कुछ लिखा ही नहीं .... नहीं नहीं तुम ये मत समझना कि शब्द सारे मोहब्बत के अफसाने जैसे आये-गए हो गए। बस हुआ कुछ यूं कि प्रेम का वो पिटारा जो मुझमें जीवन का संचार करता है, उसकी चाभी कहीं गुम हो गई है। लेकिन आज जब मैंने खुले आसमान पर प्रेम की जिद देखी तो रहा नहीं गया। फिर से कोशिश की उस ज़िद को शब्दों में पिरोने की। चलो फिर तुम्हें भी बताती हूं... वो ज़िद थी बादलों की... जो पूरे आसमान पर छा जाने को बेसब्र था, वो ज़िद थी सर्द हवाओं की... जो सबको छू कर गुजरने को बेताब थीं.. वो ज़िद थी सूरज की जो बादलों की ओट छोड़कर हर तरफ अपनी रंगत बिखेर देना चाहता था। हर किसी पर अपनी ज़िद सवार थी। हर कोई बस अपने मन का कर लेना चाहता था... और तलाश बस इतनी थी कि किसी एक की ज़िद थोड़ी कम पड़ जाती तो फिर दो एक साथ हो लेते औऱ प्रेम का नया स्वरूप बन जाता.. शायद एक नई परिभाषा गढ़ जाती...



उसका रूठना