Saturday, December 24, 2022

आवाज में प्यार नहीं.......

कोई लड़का किसी लड़की को शादी के लिए देखने आए तो प्यार कैसे परख सकता है? क्या नजरें झुकाकर बात करना, अपने करियर में पति का सपोर्ट चाहने का ख्वाब शेयर करना, इस बात की गवाही देता है कि उस लड़की में प्यार नहीं? आखिर कैसे कोई लड़की देखने आए लड़के पर अपना प्रेम उड़ेल सकती है जबकि वह उसके बारे में न कुछ जानती है, न समझती है। बस सकुचाई सी, शरमाई सी, शादी के सुनहरे सपने अपनी आंखों में लिए वह एक लड़के से मिलने के लिए कमरे में एंट्री लेती है और लड़का यह कहकर मना करता है कि उसकी आवाज में प्यार नहीं.......



'घरों पर नाम थे नामों के साथ ओहदे थे, बहुत तलाश किया कोई आदमी न मिला।' अपनी बात को बशीर बद्र जी की इन लाइनों से शुरू करने की बस इतनी ही वजह है कि इनका सीधा सा नाता मेरी इस कहानी से है। हाल ही में एक रिश्तेदार के घर जाना हुआ जहां शादी की बात चल रही थी और ये थी अरेंज मैरिज। तो, अब अरेंज मैरिज में देखने-दिखाने की बात से ही बात बनती और बिगड़ती है। वहां भी कुछ ऐसा ही दृश्य था। 


दृश्य एक: 

कमरे की दो दीवारों पर गुलाबी और दो पर नीला रंग। खिड़कियों और दरवाजे पर लगे मैचिंग पर्दे। अलमारी पर सजी प्रेम को प्रदर्शित करतीं कुछ आकृतियां और सोफे के साइड में रखा फूलदान। उसपर रूम फ्रेशनर की भीनी-भीनी खुशबू। सबकुछ काफी आकर्षक और करीने से सजा हुआ था। कमरे में काव्या, वह लड़की जिसे देखने आया था लड़का और उसकी मां का संवाद चल रहा था काव्या के माता-पिता से। वहीं कॉर्नर सोफे पर बैठी थी मैं। चुपचाप उनके हाव-भाव और संवाद की गहनता को समझने का प्रयास कर रही थी। तो अब चाय-नाश्ते के बाद बारी आई काव्या को देखने की। काव्या, जो यूं तो अपनी नौकरी के साथ घर के सारे कामकाज संभालती है, लेकिन बात जब शादी की आती तो उसे कुछ सूझता ही नहीं। हां, अब ये अलग बात है कि हर लड़की की तरह उसके भी शादी को लेकर कई सपने हैं, जिनका जिक्र अक्सर वह मुझसे करती रहती है। दरअसल, काव्या और मेरी उम्र में महज कुछ वर्षों का ही फासला है, तो वह बड़ी ही सहजता से मुझसे सारी बातें कर लेती है। खैर, कहानी का अगला दृश्य। 

दृश्य दो: 

सुर्ख लाल रंग का कुर्ता और काले रंग की चुनरी, सादगी में भी काव्या खूबसूरत लग रही थी। सामने आई तो नजरें झुकाए हुए क्योंकि कमरे में लड़के, लड़के की मां के अलावा उसके माता-पिता भी बैठे थे। लड़के की मां को नमस्ते और लड़के मानव को हेलो बोलकर काव्या सोफे पर सामने ही बैठ गई। अब लड़के की मां ने कहा कि दोनों अकेले में बात कर लें। उधर काव्या जो पहले ही अपनी मां से कह चुकी थी, कि अकेले में बात करने को मत कहना, साथ में ही रहना कहकर गई थी, सोचने लगी कि मां कहीं चली न जाएं। हुआ भी वैसा ही जैसा लड़के की मां ने कहा था क्योंकि हम जिस समाज में रहते हैं वहां लड़कियों की मर्जी न कभी पूछी जाती है और न ही वह बताएं तो सुनीं जाती है। अब कमरे में काव्या थी और लड़का। मैं बगल वाले कमरे में, जहां उन दोनों का संवाद बिल्कुल स्पष्ट सुनाई दे रहा था।

मानव: तो आप बैंकर हैं?

काव्या: जी 

मानव: कैसे काम करती हैं, ऑफिस टाइमिंग और वर्क शेड़यूल क्या है?  

काव्या: जी, सुबह साढ़े नौ बजे से शाम 6 तो कभी 7 भी बज जाते हैं। यूं तो मैनेजर हूं लेकिन कभी-कभी फील्ड पर भी जाना पड़ता है तो कभी-कभी कैश काउंटर भी 

मानव: हंसते हुए, आप सोच रही होंगी कि मैं हंस क्यूं रहा हूं? 

काव्या: नहीं बिल्कुल नहीं, आपकी मर्जी, आपका हंसने का मन है तो आप हंस रहे हैं, मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं। 

मानव: नहीं, नहीं, आप बैंकर हैं, मैंने पूछा और आपने बताना शुरू किया तो मैं श्योर हो गया कि आप बैंकर ही हैं। 

काव्या: क्यूं अब तक आपको डाउट था क्या? 

मानव: नहीं, नहीं, कुछ लोगों का प्रफेशन उनके अंदाज में भी दिखता है, आपका भी ऐसा ही कुछ है। 

काव्या: जी, हो जाता है ऐसा, अब सुबह से लेकर शाम तक 9 घंटे कभी-कभी तो 12-12 घंटे भी हो जाते हैं तो ऐसा होना तो लाजिमी है। 

मानव: और क्या-क्या शौक हैं आपके? 

काव्या: शौक, थोड़ा रूकते हुए, शायद अपने शौक याद करते हुए। बीते कई वर्षों से तो जिंदगी इतनी उलझी है कभी खुद के लिए भी वक्त नहीं मिला तो अब शौक कहां याद रहते। दिमाग पर जोर डालते हुए, उसने बताया कि मां के लिए चूडि़यां  खरीदना और कॉलेज टाइम में डांसिंग हुआ करता था। 

मानव: आप भी पूछिए कुछ 

काव्या: नहीं मैं क्या ही पूछूं 

मानव: कुछ भी 

काव्या: हल्की सी मुस्कुराहट के साथ नहीं, सबकुछ तो मां-पापा ने आपसे पूछ ही लिया है, अब मुझे कुछ नहीं पूछना। मुझे ही कुछ बताना है। 

मानव: जी बताइए 

काव्या: मेरी दुनिया बहुत छोटी सी है, मां-पापा, भाई और मेरी मासी, मासा उनकी बेटी और बेटा। बस इतनी सी ही। हां इसके अलावा कुछ है तो मेरी जॉब, जिसे मैं कभी नहीं छोड़ना चाहती क्यूंकि ये मेरा वजूद है। मैं उम्मीद करती हूं कि मेरी शादी जिससे हो, वह मुझे समझें, मेरे परिवार को समझे, स्नेह दे। बस इतना ही। 

मानव: अब परिवार का क्या कहूं मेरा दोस्त है हुजैफ अभी शादी करके वापस लौटा महज 15 दिनों में ही। लेकिन मैंने तो अपने ऑफिस में बोल दिया है कि शादी के बाद तो मैं दो से ढाई महीने छुट़टी पर रहूंगा। मुझे न अपनी लाइफ पूरी तरह इंजॉय करनी है। 

काव्या: जी, अच्छी बात है।

मानव: मुझे न इतनी शांति नहीं पसंद है, जितनी आपके घर में हैं। मैं तो जब भी ऑफिस से आता हूं एलेक्सा पर सॉन्ग्स सुनता हूं और सोते समय पंखा चला लेता हूं। ताकि आवाज आती रहे। 

काव्या: जी, वैसे मुझे तो शांति से कोई दिक्कत नहीं और ना ही अकेलेपन से। मुझे बहुत अच्छा लगता है खुद के साथ। 

मानव: तो आपके और क्या-क्या शौक हैं?

काव्या: जी, शौक, जिम्मेदारियों के बीच याद ही नहीं अब। भाई ने डांस क्लास में एडमिशन करवाया था, लेकिन फिर टाइम नहीं मिलता था तो छोड़ दिया। वरना कॉलेज टाइम में तो डांस का इतना क्रेज था कि भले ही लेट हो जाएं कॉलेज के लिए लेकिन बिना डांस प्रैक्टिस के हम कॉलेज नहीं जाते थे। कई बार तो पापा जी रिक्शे वाले को कह देते थे कि जाओ लेट हैं आज ये नहीं जाएंगी कॉलेज। लेकिन हम तब भी बिना डांस प्रैक्टिस के नहीं जाते थे कॉलेज। हालांकि बाद में हमें पैदल ही जाना पड़ता था लेकिन डांस नहीं छोड़ते थे हम। 

मानव : कुछ और बताइए अपने बारे में 

काव्या: जी, जिम्मेदारियां मुझपर बहुत छोटे से आईं। पांचवी क्लास से किचन पकड़ा जो अब तक नहीं छूटा। अब क्या ही छूटेगा? बाकी ऑफिस के काम के साथ ही मैं घर के सारे काम करती हूं। जैसे खाना बनाना, कपड़े धोना, डालना और सूखाना फिर फोल्ड करके सबकी अलमारियों में करीने से रखना। घर  बाकी का काम और घर को सजाना-संवारना। महीनेभर का गृहस्थी का सामान लाना। बस इतना ही। वैसे, आपको कैसी लड़की चाहिए थी मतलब है?

मानव : अब तो आप समझ ही गई होंगी कि मुझे कैसी लड़की चाहिए थी। 

काव्या: जी, वैसे मैं सुंदर तो नहीं हूं लेकिन हां स्मार्ट हूं, तो आप मुझे सिलेक्ट करें या रिजेक्ट? मतलब इसलिए पूछा कि कैसी लड़की चाहिए थी आपको?

मानव: जी मैं सुंदर हूं, या नहीं ये तो सामने वाला बताएगा न मतलब खुद कैसे?

काव्या: नहीं, दूसरे तो लेग पुलिंग करते हैं केवल, मैं दूसरों की विचारधारा खुद पर नहीं थोपती। क्यूंकि दूसरे कब किसी का अच्छा सोचते हैं, तो उनके हिसाब से खुद को चलाना मुझे समझ नहीं आता। इस मामले में हम कॉन्फिडेंट हैं न कि ओवरकॉन्फिडेंट। वैसे भी हर व्यक्ति को पता ही होता है वह कैसा है? 

मानव: नहीं, दूसरों की राय लेनी चाहिए। 

 (तभी कमरे में काव्या की मम्मी ऐंट्री करती हैं और लड़के से पूछती हैं कि बेटा आपको हमारी बिटिया पसंद है?)

मानव: हां, तभी तो इतनी देर तक बात की। 

काव्या : झुकी नजरों से मां से पूछा कि हम जाएं अब। 


दृश्य तीन : 

तभी मानव की मम्मी ने कहा कि अरे कहां जाओगी? हम लोग बैठे ही हैं और तुम जाओगी, तुम्हारा घर है, हम लोग चले जाएं तो जाना। थोड़ी देर बाद काव्या की मम्मी ने मानव की मम्मी को शगुन देकर विदा किया। तो मैंने काव्या से पूछा कि तुम्हें लड़का कैसा लगा? काव्या ने कहा कि दी, अच्छा था, पर सामने से ठीक से देख नहीं पाए। क्यूं, क्यूं नहीं देखा? कमरे में तुम दोनों ही तो थे, कोई तीसरा थोड़ी था। अरे दी, शर्म आ रही थी। अच्छा चलो ठीक है, जितना देखा उतना कैसा लगा? दी, अच्छे थे, उनके बाल भी सफेद थी, कोई कलर नहीं किया था, यानी कि जैसे हैं वैसे हैं बस यही एक बात अच्छी थी। जो हमें भी भा गई। घर पर भी सभी खुश थे। रात काफी हो चुकी थी तो मैं भी काव्या के घर पर रूक गई थी। हम दोनों काफी देर तक बातें करते रहे, उसने मानव के बारे में कई बातें की। 

.........मसलन मानव सुंदर नहीं है, तो मैंने कहा कि छोटी, मैं काव्या को प्यार से छोटी ही बुलाती हूं। सुंदरता ही सबकुछ नहीं होती व्यक्ति का व्यवहार मायने रखता है। तो काव्या ने कहा हां दी मानव के चेहरे पर सुकून तो है। इसलिए वह अच्छे लगे। मैनें कहा, अभी तो तूने कहा कि उसे देखा नहीं ध्यान से फिर इतना कैसे आब्जर्व किया। छोटी ने कहा कि दी, आप भी छेड़ती हैं मुझे, फोटो देखी थी न पापा के फोन में। ओह, फोटो देखी थी, इतना कहते ही हम दोनों बहनें खिलखिलाकर हंसने लगीं। छोटी ने कहा कि दी वह पूजा-वूजा नहीं करते, बस भगवानजी के पैर छूकर जाते हैं। हां तो ठीक है न, उसके हिस्से की भी तुम ही कर लेना। वैसे भी तुम तो इतना पूजा-पाठ करती है कि तुम्हारा पति भगवान के पैर भी न छुए तो भी वह नाराज नहीं होंगे। पक्की वाली भक्त हो न तुम उनकी। ऐसे ही बात करते-करते हम दोनों को न जानें कब नींद आ गई और आंख खुली तो सुबह के 8 बज चुके थे। मैं भी दौड़ते-भागते अपने घर अपने शहर को लौटने के लिए रवाना हुई तो काव्या अपनी बैंक के लिए। 

दृश्य चार : 

बस में बैठी मैं काव्या के ही बारे में सोच रही थी और विश कर रही थी कि उसके लिए जो हो वो अच्छा हो। अगर मानव उसके लिए सही हो और जिंदगीभर उसे खुश रखें और बहुत प्यार दे, जो वह डिजर्व करती है तो ही यह रिश्ता हो। अगर वह उसके लिए सही न हो तो कन्हैयाजी ये शादी न हो। पता नहीं कन्हैयाजी से यह कहना सही है या गलत, मैं नहीं जानती थी लेकिन छोटी के लिए मेरा स्नेह वैसा ही है जैसा मेरी कोई सगी बहन होती तो उसके लिए होता। खैर, स्टेशन आ चुका था मेरा सफर भी पूरा हो चुका था। मन में तमाम सारी बातें चल रही थीं, जिन्हें मैंने कुछ देर के लिए विराम दिया और वापस अपने काम में लग गई। देर रात फोन वाइब्रेट हुआ, देखा तो काव्या की कॉल थी। मैंने कहा छोटी को शादी की खुशखबरी देने की इतनी जल्दी थी कि रात के 12 बजे कॉल कर रही हैं, सुबह तक का भी सब्र नहीं हुआ। यह सोचते हुए और मुस्कुराते हुए कॉल पिक की। उधर छोटी की आवाज में गंभीरता थी। 

हैलो, हैलो, छोटी क्या हुआ? वह बोली दी, उन्होंने शादी के लिए मना कर दिया। मैंने पूछा क्यों? छोटी ने जो आगे बताया वह बिल्कुल भी तर्कसंगत नहीं था। उसने बताया कि लड़के ने पापा जी से कहा है कि मेरे और उसके विचार नहीं मिलते जो कि किसी भी रिश्ते की आवश्यक कड़ी होते हैं। मैनें कहा, यह कैसा जवाब है? अरे, विचारों में समानता तो भाई-बहन में नहीं होती, जिनकी परवरिश एक साथ, एक ही माहौल में होती है। पर, तुम दुःखी मत हो, वह तुम्हारे लिए नहीं था। जो हुआ वह अच्छा ही हुआ। लेकिन छोटी काफी हर्ट लग रही थी। उसने कहा दी मैं, एक बार उनसे बात करना चाहती हूं क्यूंकि ये बात जो उन्होंने कही वह पूरी तरह से गलत है और तार्किक भी नहीं। मैं उसकी बातों पर हैरान थी क्यूंकि जितना मैं छोटी को जानती हूं, वह किसी को सफाई न देती है न मांगती है फिर इस बार इतना अलग बिहेव क्यूं? मुझे लगा शायद उसके मन पर मानव के मना करने का गहरा प्रभाव पड़ा। पड़ना भी था क्यूंकि ऐसा बहुत कम ही होता है कि कोई लड़की देखकर जाए और विचारों मं समानता न होने का तर्क देकर मना करे।

........ हम सभी जानते हैं कि एक समान विचार कैसे हो सकते हैं, भई नमक की जगह नमक और शक्कर की जगह शक्कर ही तो होगी। खैर, मैंने छोटी को समझाया कि इस बात को जाने दे, जो हुआ वह कन्हैया की मर्जी है। शायद यही उसके लिए अच्छा है। बहुत रात हो चुकी है छोटी, अब सो जाओ, बस ये याद रखना अपनी मर्जी का हो तो ठीक, न हो तो और भी ठीक क्यूंकि जो कन्हैया करेंगे वह शुभ ही होगा। फोन कट चुका था लेकिन सच कहूं तो मेरे मन में भी उलझन थी। मैंने देखा है छोटी को घर-परिवार और नौकरी संभालते। लोगों के टूटते हुए रिश्तों को बचाते। दूसरों की खुशियों में मुस्कुराते और उनके दुःख में दुःखी होते। पर ईश्वर जो करता है वह अच्छा ही होता है यही सोचकर सोने का जतन करने लगी। 


दृश्य पांच : 

छोटी से बात किए हुए चार-पांच दिन हो गए थे। मैं भी ऑफिस के काम में ऐसी उलझी कि वक्त ही नहीं मिला। तभी एक दोपहर मैं ऑफिस का काम निपटा रही थी कि छोटी का कॉल आया। उसने बताया कि उसकी और मानव की बात हुई थी। उसकी बात के बाद मुझे लगा जो हुआ वह ठीक ही था क्यूंकि जितना मैं उसे जानती थी उसके मुताबिक तो ये रिश्ता शायद कुछ महीनों में ही बिखर जाता और अगर वह अपने इस रिश्ते को बचाने की कोशिश भी करती तो उसे खुद को खोना पड़ता। जो उसके लिए सुखद तो नहीं ही होता। काव्या ने बताया कि मानव ने उसे कितना गलत आंका। उसने बताया कि उसके पापा ने मानव को कॉल की थी तो पता चला कि विचारों में असमानता का आशय यह था कि वह करियर ओरियंटेड है। अपने करियर के आगे वह कुछ नहीं सोचती। यह सबकुछ सुनकर मैं आवाक् रह गई। काव्या के बारे में ऐसा पहली बार सुन रही थी मैं, वह भी कुछ पल की मुलाकात में कोई अगर सही न समझ पाए तो इतना गलत अंदाजा कैसे? खैर इससे मानव की सोच का भी पता चलता है। आगे है मानव और काव्या का संवाद.... 

मानव : हैलो 

काव्या : हैलो, आवाज आ रही है आपको? 

मानव : जी, बोलिए। 

काव्या : मानव जी, मैं काव्या

मानव : हां बोलिए

काव्या : मानव जी, आपको हमारी कौन सी बात समझ नहीं आई। आपने कैसे समझा कि हम केवल जॉब करेंगे और फैमिली नहीं देखेंगे। 

मानव : आप बार-बार अपनी जॉब के ही बारे में बात कर रही थीं। 

काव्या : तो क्या बात करने से व्यक्ति केवल अपनी जॉब के ही बारे में सोचता है। आपने पूछा था तो ही तो बताया। 

मानव : नहीं, आप केवल जॉब के ही बारे में बात कर रही थीं। मैंने कई बार कोशिश की कि संवाद की दिशा बदले लेकिन आप तो एक ही बात कर रही थीं। शौक पूछा तो भी वही। 

काव्या : हां नहीं याद था मुझे शौक, हो जाता है, वरना हम बताते कि हमें बागवानी करना अच्छा लगता है, घर को सजाना-संवारना अच्छा लगता है। लेकिन बीते कुछ सालों में जिंदगी में काफी आपाधापी रही तो याद नहीं रहा कि कोई शौक भी है। टीचर साहब.....

मानव : टीचर साहब! कैसे बात कर रही हैं आप, ये कौन सा तरीका है बात करने का। 

काव्या : आई एम सॉरी, इट वॉज जस्ट ए स्लिप ऑफ टंग। यहां यह स्पष्ट कर दूं कि काव्या ने ऐसा बोला क्यूं दरअसल वह जब मानव से बात कर रही थी तो उसी समय सामने बशीर बद्र जी की किताब पढ़ रही थी जिसके पहले ही पन्ने पर लिखा है कि बशीर बद्र साहब ने.... तो शिक्षक महोदय, कहने की बजाए काव्या के मुंह से टीचर साहब निकल गया। उसपर सॉरी बोलने के बाद मानव और बिफर पड़ा। 

मानव : ये अच्छा शब्द बनाया अंग्रेजों ने कि किसी को मार डालो और फिर छोटा सा शब्द सॉरी बोल दो। 

काव्या : देखिए हमने जो सॉरी बोला है अक्चुअली आई रियली मीन इट। 

मानव : नहीं सॉरी मत बोलिए, इसकी कोई जरूरत नहीं है। 

काव्या : ओके, माफ कर दें, गलती हो गई लेकिन इट वॉज जस्ट ए स्लिप ऑफ टंग। 

मानव : नहीं आपको कुछ भी बोलने की जरूरत नहीं है। 

काव्या : ओके। गलती हो गई बस यही समझ लें। 

मानव : आप कैसे बात करती हैं? 

काव्या : मतलब?

मानव : मतलब मुझे देेखिए मैं, कितने आराम से बात कर रहा हूं और आप। क्या घर में भी सभी से ऐसे ही बात करती हैं? 

काव्या : नहीं। घर पर तो ऐसे नहीं बात करती। 

मानव : यही कह रहा हूं कि आपकी आवाज में प्यार तो है ही नहीं। 

काव्या : प्यार! 

अब काव्या अपनी बात बताते-बताते यहीं रुक गई। मैंने पूछा क्या हुआ? तो बोली दी, ये प्यार से बात कैसे करते हैं? मैं तो उन्हें जानती तक नहीं थी। वो मुझे देखने आए तब तो इतने अच्छे से बात की थीं अब फोन पर जो कह रहे थे तो कैसे प्यार से बात करते। वो न तो दोस्त थे, न होने वाले पति। तो एक अजनबी से प्यार से बात। वाकई काव्या ने जो कहा उससे तो मैं भी सहमत थी। बात आगे बढ़ती है। 

मानव : या तो शादी ही न करनी हो तो भी ठीक है कि साधना करने चली जाओ लेकिन सामान्य जीवन में शादी करनी होगी। लेकिन तुम्हारे अंदर एक चीज मिसिंग है जो सबसे ज्यादा जरूरी है। 

काव्या : क्या मिसिंग है? 

मानव : प्यार। प्यार करना सीखिए। दोस्त बनाइए। हंसते हुए और हां दूसरों की राय भी जानिए अपने बारे में। 

काव्या : मानव का यह तंज बहुत बुरा लग रहा था लेकिन चुप ही रही। 

मानव : मैं नहीं जानता कि लोग कहते हैं कि एक सफल व्यक्ति के पीछे किसी महिला का हाथ होता है या होता भी होगा लेकिन तुम्हें नहीं लगता कि पति ऑफिस से आए तो हग करे, ये प्यार मिसिंग है। 

काव्या : प्यार, ऐसे तो किसी सड़क चलते इंसान से नहीं हो जाता। प्यार तो धीरे-धीरे होता है। यह तो अहसास है न। 

मानव : हां तो वही दोस्त बनाइए और प्यार करना सीखिए। 

काव्या : तो मुझे आपसे बस यही कहना था कि......

मानव : जी मुझे पता है कि आपको क्या कहना था

काव्या : क्या पता है?

मानव : यही कि जो कहना था आप कह चुकी हैं 

काव्या : (मन ही मन में कहां समझे आप, अगर समझे होते तो ऐसी बातें नहीं करते। खैर, बस इतना कहना था कि दोबारा कभी लड़की देखने मत जाइएगा।)

मानव : तो आपको कुछ नहीं कहना है!

काव्या: जी, बाय 

मानव: बाय 

दृश्य छह: 

काव्या की बातें सुनकर मैं बेहद हैरान थी। लेकिन एक बात का सुकून था, जो हुआ अच्छा ही हुआ क्यूंकि जितना मैंने मानव को समझा, उस लिहाज से वह काव्या के लिए बिल्कुल भी सही लड़का नहीं था। वह काव्या के शादी के बाद पति से दोस्ती, फिर प्यार फिर पति-पत्नी के रिश्ते की शुरुआत के सपने को न ही समझ सकता था और न ही निभा सकता था। वाकई कोई पहली मुलाकात में प्यार की ऐसी उम्मीद कैसे कर सकता है क्यूंकि मेरे लिहाज से तो प्यार दर्शन का विषय है प्रदर्शन का नहीं... फोन पर दूसरी ओर खामोशी थी, शायद छोटी मेरा नजरिया जानना  चाहती थी। मैंने उसे भी यही बातें कहीं जो मेरे मन में थीं। 

.......काव्या मानव तुम्हारे लिए था ही नहीं क्यूंकि जिस प्यार की तुम्हें तलाश है वह एक पवित्र अहसास है, जो जब जीवन में दस्तक देगा न तो तुम ऐसी सैड नहीं होगी बल्कि हंसते-मुस्कुराते हुए हमें कॉल करोगी। तो जब प्यार तुम्हारे जीवन में आएगा तो वह तुम्हारी पूरी दुनिया बन जाएगा। तुम्हारे सपनों को पंख देगा ताकि तुम खुले आसमान में जहां तक चाहे उड़ सको, निर्भय होकर। इस उम्मीद और पक्के विश्वास के साथ कि कोई बेहद खास है तुम्हारे लिए जो तुम्हें कभी भी जमीन पर गिरने नहीं देगा। हां, अगर तुम गिरने भी लगी तो तुम्हें सहारा देकर वापस उड़ने का साहस देगा। तुम्हारी हिम्मत बनेगा बजाए कि चंद पलों में तुम्हें गलत और खुद को सही साबित करने की जद्दोजहद करेगा। तो चलो, मेरी प्यारी छोटी, अब बशीर बद्र साहब की किताबें पढ़ने के बजाए कुछ ऑफिस का काम कर लेना। इतना सुनते ही वह खिलखिलाकर हंस पड़ी। फोन कट चुका था और मुझे भी सुकून था कि काव्या के सपने टूटने से बच गए थे। 

..........काव्या की यह कहानी आप तक पहुंचाने का मेरा एक ही मंतव्य था कि क्या आज जब हम चांद-तारों को भी अपनी गिरफ्त में समझते हैं। ग्रहों को तो हम साइंस की दृष्टि से ऐसे देखते हैं कि जैसे उन्हें हम जैसे इंसानों ने ही बनाया है। जबकि हम सभी जानते हैं कि कोई शक्ति है जो सब संचालित करती है। साइंस भी इस बात को मानता हैं लेकिन कुछ ऐसे भी लोग हैं जो पूरी दुनिया अपने इशारों पर चलाने का भ्रम रखते हैं। उन्हें लगता है कि सबकुछ बस उनके हिसाब से ही चले, दूसरे उनके लिए मायने ही नहीं रखते। काव्या की इस कहानी में क्या आपको नहीं लगा कि कोई लड़का किसी लड़की को देखने आए तो प्यार कैसे परख सकता है? क्या नजरें झुकाकर बात करना, अपने करियर में पति का सपोर्ट चाहने का ख्वाब शेयर करना, इस बात की गवाही देता है कि उस लड़की में प्यार नहीं? क्या आपको लगता है कि मानव सही था? या फिर मेरी ही तरह आपको भी यही लगता है कि मानव इंसान अच्छा हो सकता है लेकिन एक अच्छा पति बनने की शायद उसमें एक भी खूबी नहीं। आखिर कैसे कोई लड़की देखने आए लड़के पर अपना प्रेम उड़ेल सकती है जबकि वह उसके बारे में न कुछ जानती है, न समझती है। बस सकुचाई सी, शरमाई सी, शादी के सुनहरे सपने अपनी आंखों में लिए वह एक लड़के से मिलने के लिए कमरे में एंट्री लेती है और लड़का यह कहकर मना करता है कि उसकी आवाज में प्रेम नहीं। खैर, काव्या कोई पहली या आखिरी लड़की नहीं है जिसके साथ आज के समय में ऐसा हुआ, ऐसी बहुत सारी लड़कियां हैं जो यह सबकुछ झेलती हैं, तो अगली बार आपको किसी ऐसी ही काव्या के बारे में पता चले तो कोशिश करियेगा कि फिर किसी मानव को काव्या को रिजेक्ट करने का हक न हो......




10 comments:


  1. एकदम लग रहे हो फिल्मों वाले स्क्रिप्ट राइटर

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  2. -दृश्य वर्णन शानदार
    -मानवीय द्वंद (एक लड़की के मनोभावों का खासकर) सामने घट रहा हो जैसे
    -लड़की के घर और परिवार की मनःस्थिति का सफल चित्रांकन
    -परोक्ष रूप से समाज की विसंगतियों को अच्छे से उकेरा है
    - पुरुष समाज हावी है या निर्णायक है बेवजह, पूरी तरह से कहने में सफल।
    - एक शानदार स्टोरी राइटर के सभी तत्व मौजूद💐👍🏻

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  3. Heart-touching story of Kavya but so far I think she will get far better than Manav.

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  4. अदभुत, एक एक शब्द जीवंत जीवन के सटीक मार्गदर्शक हैं एवम् एक महिला के हृदय के फूटते उद्गार बहुत ही सुन्दर ढंग प्रकट हुए हैं,।। विठ्ठल

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उसका रूठना