Thursday, May 10, 2018

न भाषा भाव शैली है, न कविता सारगर्भित है ह्नदय का प्यार है जितना वह सादर समर्पित है------

आज न ही कोई विशेष दिन है और न ही कोई खास बात, हुआ कुछ यूं कि हमारी कबर्ड से आज स्लैम बुक मिली वही पुरानी, 12वर्ष पुरानी और उसके पन्नें पलटे तो कुछ यादों ने एक पल में पूरा फ्लैश बैक दिखा दिया। तकरीबन मेरे हर सीनियर के कमेंट बॉक्स में एक बेहद कॉमन कॉम्पलीमेंट था.........पापा की लाडली  
जानतें हैं ये बात सबको कैसे पता थी क्यूंकि अगर हम अपना लंचबॉक्स भूल जाते थे तो कभी पापा का ऑफिस ब्यॉय तो अमूमन पापा जी खुद लेकर पहुंच जाते थे और हम पापा से मुखातिब होते थे 
प्रिंसीपल के रूम में तो हमारे प्रिंसीपल सर जो अब इंजीनियरिंग कॉलेज के डॉयरेक्टर हैं -----शर्मा सर कहते थे क्या हुआ प्रियंका ?
              तुम रोज-रोज पापा को जानबूझकर परेशान करती हो और पापा कहते कोई बात नहीं अगली बार अगर बड़के भूल गए तो लंच नहीं भेजा जाएगा। जबकि ऐसा पापा कभी कर नहीं पाए। खास बात यह है कि ऑफिस ब्यॉय को भी पापा खुद मना करते थे और खुद ही चले आते थे। मुस्कुराते हुए हमें लंचबॉक्स थमाकर चले जाते थे। ऑफ्टरऑल वो भी अपना लंचटाइम से टाइम निकालकर आते थे और समय की पाबंदी तो पापा को आज भी इतनी है कि हम ब्रेकफास्ट के टाइम पर टेबल पर नहीं पहुंचे तो हमारा ब्रेकफास्ट फास्ट में तब्दील हो जाता है।
खैर हम बात कर रहे थे स्लैम बुक के कुछ बेहद कॉमन कॉम्पलीमेंट की। तो हमारी स्लैम बुक में पापा का बुना वो ख्वाब जो उनकी लाडली के लिए पहले पन्नों में दर्ज था वह भी मिल गया। दरअसल पापा ने उसे अपनी डायरी में लिखकर संजो लिया हमारे लिए और हमने उस पन्नें को सहेज लिया जानें क्या सोचकर। फिर क्या था मन जाने क्यूं मचल उठा उसे ब्लॉग पर हमेशा के लिए सहेजने का। आंखें पढ़ते-पढ़ते ही नम हो आई लेकिन यकीन जानिए हमारे होठों पर पापा जी का स्नेह मुस्कुराहट बनकर तैर रहा था। 
यह वो ख्वाब है जो देखा गया दशक पहले....फिर पापा जी ने उसपे अपने बड़के यानि कि हमारा नाम (बचपन से ही पापा हमें इसी नाम से बुलाते हैं कभी बेटी या फिर मेरा नाम नहीं सुना हमनें )वो गीत जो उनकी शादी में शिष्टाचार में गाया गया। उन्होंने उसे हमारी शादी के लिए सहेज लिया। अजीब बात है ना इस रिश्ते की बिना कुछ कहे बहुत कुछ कहता है.... मुझे लगता है कि मैं उस गीत से जुड़ी मेरे पापा जी की भावनाओं को शायद उतने बेहतर तरीके से पेश नहीं कर पाऊंगी जितना वह बड़के के लिए महसूसते हैं..... 
इसलिए पंक्तियां समर्पित करती हूं......

----------न भाषा भाव शैली है, न कविता सारगर्भित है
ह्नदय का प्यार है जितना वह सादर समर्पित है।।
यह कन्यारूपी रत्न तुम्हें मैं आज समर्पित करता हूं।
निज ह्नदय का प्रेम प्यारा टुकड़ा लो मैं तुमको अर्पिण करता हूं।।
मां की ममता का सागर है, यह मेरी आंखों का तारा है।
कैसे बतलाऊं मैं तुमको किस लाड़-प्यार से पाला है।
यह बात समझकर मैं अपने मन ही मन रोया करता हूं।। 
मेरे ह्नदय का नील गगन का यह चंदा तारा था।
अब तक न जाने पाए मैं कि इसपर अधिकार तुम्हारा था।।
लो आज अमानत लो अपनी करबद्ध निवेदन करता हूं।।
यह कन्यारूपी रत्नी तुम्हें मैं आज समर्पित करता हूं।।
इससे तो भूल बहुत होगी, यह मेरी राजकुमारी है।
इसके अपराध क्षमा करना यह मां की दुनिया की सुकुमारी है।।
जिस घर में पलकर बड़ी हुई, सूना कल वह आंगन होगा।
यह बात समझकर मैं अपने मन ही मन रोया करता हूं।।
यह जाएगी सब रोएंगे, छलकेगी नयनों की गागर।
माता-बहनें-भैया रोए और होगा करूणा का सागर।।
लो आज तुम्हें इन नयनों की प्रिय सीता अर्पण करता हूं.......
संग इसके तुमको लो आज पिता कहलाने का अधिकार समर्पित करता हूं।।
यह कन्यारूपी रत्न तुम्हें मैं आज समर्पित करता हूं......................

(सॉरी पापा आपकी इजाजत के बिना ही बड़के ने इसे ब्लॉग पर पोस्ट किया। लेकिन आज जब 12बरस बाद हमनें यह कविता पढ़ी तो इसके मायने और आपके अरमान हमें समझ आए और हम खुद को रोक नहीं पाए--- )


3 comments:

  1. बेटियां सबसे अनमोल रत्न है वो जहां रहे खुश रहे बस यही कामना है.....
    आपके इस कविता के भाव दिल को छू गए।

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उसका रूठना