यूं तो कोई खास बात नहीं
लेकिन तुम्हें नाम से पुकारना अच्छा नहीं लगता।।
जाने क्यूं तुम्हारा नाम होठों पर आते ही तुम बेगाने लगने लगते हो।
हां सच ही तो कि कोई खास बात नहीं, नाम न लेने के पीछे,
हुआ कुछ यूं कि पहले हमारा काम चल जाता था इक-दूजे का नाम लिए बगैर।।
फिर हम धीरे-धीरे दोस्त बनें, ऐसा महसूस किया हम दोनों ने।
तो फिर दोस्त से काम चल गया, फिर नाम नहीं लिया।।
फिर रफ्ता-रफ्ता प्रेम के बीज पल्लवित और पुष्पित हुए, तो भी बिना नाम के काम चल गया।।
कैसे? अरे आप -जनाब और सुनिए से।।😊
फिर हम अपनों के लिए अपने से धीरे -धीरे जुदा हुए।
लेकिन जाने से पहले न तुमनें लौटने का वादा किया और न ही मैंने भूलने का।
और आखिरी अलविदा भी तुम मुझे बिना नाम से पुकारे कह गए.....ओह हां ....
याद आया ....जुबां से नहीं निगाहों से.....
यानि हम साथ थे तब भी अनाम थे, जुदा हुए तो भी अनाम ही थे,
और अब हम इक-दूजे को महसूसते हैं तो भी तुम मेरे अनाम और मैं तुम्हारी अनामी....
हां लेकिन आज जब तुमसे जुड़े दिल के हर तार को तोड़ना चाहा,
और महज़ इक बार तुम्हारा नाम मेरे होठों पर आया,
तो इक पल में हम बेगाने हो गए,
सैकड़ों तीर मेरे दिल पर चल गए,
जबकि तुम्हें नाम से न पुकारना कोई खास बात तो नहीं.....
जबकि तुम्हें नाम से न पुकारना कोई खास बात तो नहीं.....