Saturday, August 25, 2018

कोलकाता के सफर में स्वाद-ए-बनारस बाटी-चोखा

....कौन कहता है कि जगह बदले तो खानपान बदलता है। स्वाद बदलता है या फिर खाने का अंदाज बदलता है। बनारस से 680 किलोमीटर दूर कोलकाता में बनारस का स्वाद लोगों की जुबान पर चढ़कर बोलता है।
वेजेटेरियन ही नहीं नॉन वेजेटेरियन भी बनारसी बाटी चोखा को ढूढते हुए वहां पहुंचते
हैं और फिर वीक ऑफ पर खाने को लेकर वही उनकी फेवरेट जगह होती है। यकीन जानिए जब मैं वेज खाने की तलाश में गूगल कर रही थी और बाटी चोखा रेस्टोरेंट का नाम देखा तो मन किया जाकर देखते हैं। और फिर सवाल प्योर वेज खाने का भी था। लेकिन खाने का वही टेस्ट होगा लखनऊ या फिर वाराणसी वाला सोचा नहीं था। जैसे ही हमारी नजर बाटी चोखा रेस्टोरेंट पर पड़ी, चेहरे पर मुस्कान अपने आप तैर गई। हो भी क्यूं न वही लुक वहीं अंदाज। फिर भी खाने के उसी टेस्ट को लेकर जरा सोच में थी। तभी दरबान ने दरवाजा खोला और बड़ी तहजीब के साथ अंदर तक ले गया। कोलकाता में भी लखनवी अंदाज दिल को छू गया। इसके बाद इंटीरियर पर नजर गई। हूबहू राजधानी और वाराणसी की शक्ल का था। फिर तो तसल्ली हो गई कि स्वाद भी वही होगा। कुछ ही देर में हमारे जाने-पहचाने अंदाज में परोसी गई बाटी और चोखा। साथ में टमाटर-मिर्च और लहसुन वाली चटनी घी के साथ। स्वाद जैसे ही जुबान तक पहुंचा, मंुह से अपने आप निकल गया अरे वाह..... लजीज बिल्कुल वहीं स्वाद। फिर तो यही अपना अड्डा बन गया। हां बस एक दिक्कत थी कि चाय यहां शाम के 7 बजने के बाद नहीं मिलती।
.......वाराणसी से शुरू हुआ कोलकाता तक पहुंचा और जल्दी ही नोएडा में भी होगी दस्तक.......कोलकाता में बनारस के स्वाद को पाकर बहुत खुशी हुई तो बस फिर क्या था हमने मैनेजर से और वहां आए लोगों से बात की। मैनेजर एसके मिश्रा जी ने बताया कि कोलकाता में बाटी-चोखा की शुरूआत वर्ष 2015 में सॉल्ट लेक फाइव-डी में हुई। पहले साल से ही लोगों का बहुत अच्छा रिस्पांस मिला है। खासतौर पर यूपी से आने वाले लोग स्पेशली बाटी चोखा ढूढ़कर वहां पहुंचते हैं। उन्होंने बताया कि स्वाद से कोई समझौता न हो, इसके लिए बाटी-चोखा के शेफ रोटेट होते रहते हैं। कभी बनारस वाले लखनऊ तो कभी कोलकाता। कुछ इस तरह से होता है स्वाद का मैनजमेंट। उन्होंने बताया कि वाराणसी, लखनऊ और कोलकाता के बाद जल्दी ही नोएडा में भी स्वाद-ए- बनारस की दस्तक होगी।  वहीं रेस्टोरेंट आए लोगों से जब बात की तो वह भी बनारस के स्वाद की तारीफ करते नहीं थके। टीसीएस में बतौर सॉफ्टवेयर काम करने वाले अयान और राजीव ने बताया कि यूं तो वे नॉन वेजेटेरियन हैं लेकिन वीकेंएड्स पर वे बाटी-चोखा ही आते हैं। अयान ने कहा कि गजब का स्वाद है इसमें। यहां का खाना खाकर सोचता हूं कि एक बार तो यूपी जरूर जाना चाहिए। बेहतरीन स्वाद है वहां के खाने में फिर चाहे यूपी का पुचका हो या फिर बाटी-चोखा। 

Thursday, August 9, 2018

.....दो सितारों का जमीं पर है मिलन आज की रात


देखों बरसात आई तो तुम भी करीब आ गए। यूं लगता है कि अब हमारा मिलन होकर ही रहेगा। जानते हो तुम्हें देखकर मन करता है गुनगुनाने का कि 'दो सितारों का जमीन पर है मिलन आज की रात, मुस्कुराता है उम्मीदों का चमन आज की रात।' झील मुस्कुरा रही थी और बादल को देखकर अपने मन ही मन में बातें किए जा रही थी। अभी उसके चेहरे पर लहरों की मुस्कुराहट तैरी ही थी कि अचानक से चली बोट ने उसे अंदर तक झकझोर दिया। और उसे याद आई बीतीं बातें । झील फिर से खुद से बातें करने लगी तुमसे बिछड़े हुए कई महीनें हो गए। इस दौरान तुम्हें भूलने की लाख कोशिशें की। कभी तमाम रातें जाग कर मैंनें लहरों की अठखेलियों पर मुस्कुरा कर जीने की कोशिश की तो कभी शांत होकर मैंने खुद के खालीपन को भरने के लिए अपनी गहराई को मांपना चाहा। हालांकि उस दौरान भी आसमान पर तुम मुझे नजर आते थे। कभी बारिशों को खुद में समेटे हुए तो कभी गरजकर यूं जताते कि जैसे अभी ही मुझसे लिपट जाओगे और बरस जाएगीं बूंदें तुम्हारी मोहब्बत की। 
........लेकिन तुम्हारी तमाम कोशिशों के बावजूद मैंने तुम्हारी राह तकनी छोड़नी दी थी। मैंने तुमसे हर रिश्ता खत्म कर लिया था और मौसम भी मेरे साथ था। तभी तो तुम दूर मुझे आसमान पर टके नजर आते थे। जिसके होने न होने का अर्थ मेरे लिए बेमानी था। इस तरह कई महीने बीत गए। अब तो लहरों और नावों के साथ मेरी अच्छी दोस्ती हो गई थी। और तो और मेरा सफर करने आने वाले सैलानी जब मुझे छूकर अपनी तस्वीरें खिंचवातें तो मुझे खुद पर बड़ा गुमां होता था। मैं इतराती थी, इठलाती थी और उनके सफर को और भी रोमांचक और खूबसूरत बनाने के लिए अक्सर मचल सी जाती थी। तब नाविक कहता था कि धारा तो बिल्कुल हमारे ही संग हो ली है जैसे। फिर एक दिन प्रेमी जोड़ा मेरी सैर करने आया और अपने प्रेम का साक्षी मुझे बनाने लगा। मैं मन ही मन सोच रही थी कि जिसके भीतर प्रेम ही न हो आखिर वह कैसे प्रेम का साक्षी बन सकता है। मैंने खुद को टटोला। मेरे मन के किसी कोने में दफन तुम्हारी बातें, जो अब यादें बन चुकी थीं। वो फिर से मुझपर हावी सी होने लगीं। मौसम तेजी से बदलने लगा।
............. आसमान पर फिर तुम्हारी आमद हुई अचानक से तुम्हारे गरजने की आवाज हुई फिर बारिश की हल्की-हल्की फुहारें पड़ने लगीं। आज फिर तुमने कोशिश की मेरे करीब आने की और फिर से तुमसे तारूफ हो, ऐसी कोई ख्वाहिश नहीं थी। तभी प्रेमी जोड़े आपस में गले लगकर बातें कर रहे थे कि उनकी मोहब्बत को कुदरत भी बारिश की बूंदों से आर्शीवाद दे रही है। उनपर अपना प्यार लुटा रही है। मुझे रश्क हुआ उनसे तभी लहरों ने मुझसे कहा कि झील ये बूंदें तो जानें कब से तेरी हैं सिर्फ तेरी और अब और इनसे जुदा मत रहो। उसने कहा समेट लो इसे अपने आगोश में क्योंकि यह बादल तुम्हारा है और जानती हो... कि जिनसे मिलने की तमन्ना हो वही आते हैं, चांद-तारे तेरी राहों में बिछे जाते हैं, चूमता है तेरे कदमों को गगन आज की रात...... लहरों का ये कहना था और तुम मेरे करीब आकर झूमकर बरसे तो यूं लगा जैसे दो सितारों का जमीं पर है मिलन आज की रात......

Sunday, August 5, 2018

महलों के शहर सिटी ऑफ जॉय में पहला दिन.... बेहद खास रहा यूपी के गोलगप्पा और कोलकाता का पुचका के नाम

                                                                                                                           









देर रात पहुंची हमारी ट्रेन और फिर काली-पीली टैक्सी (जी हां यहां टैक्सी को इसी नाम से बुलाते हैं,) से सॉल्ट लेक का सफर आधे घंटे में ही तय हो गया। अगली सुबह बेहद खूबसूरत थी। बादलों के बीच से धूप जैसे झांक रही हो। तो इस तरह से दिन की शुरूआत हुई और दिन ढलते-ढलते बरखा रानी जमकर बरसीं। हमनें भी खूब मजे किये क्योंकि अभी तक तो सुना था कि बादल कहीं बरसे न बरसे लेकिन कोलकाता में अगस्त के महीने में जमकर बारिश होती है। तो हम इस खूबसूरत मौसम से क्यूं बचते? तो हो लिए बारिश के संग और पहुंच गए कॉफी पीने। शानदार कैपेचीनों का लुत्फ उठाने के बाद जैसे ही बारिश हल्की हुई, पहुंच गए पुचका खाने। जानते हैं पुचका क्या है? अरे भाई हमारे यूपी का हर दिल अजीज और लखनऊ में तो अलग-अलग पानियों यानि कि खट्टा-मीठा, हींग वाला, नींबू वाला, दही वाला और न जाने क्या-क्या। सही समझे आप गोलगप्पे। यकीन मानिए यहां के पानी पूरी का नाम ही नहीं बदला बल्कि टेस्ट में भी लाजवाब हैं। हालांकि ये अलग बात है कि पुचका खिलाने वाले भइया जी यूपी के ही इलाहाबाद शहर से रोजी-रोटी की तलाश में कोलकाता पहुंच गए। बातों ही बातों में उन्होंने यह भी साझा किया कि पुचका का अलग अंदाज उन्होंने कोलकाता में सीखा लेकिन उसमें यूपी का तीखा वाला तड़का वो जरूर लगाते हैं और फिर जब आखिरी पुचका खिलाते हैं तो उसमें ढेर सारी मटर के साथ पुदीने और कच्चे आम की चटनी का स्वाद डाल देते हैं, जिससे पुचका और भी लजीज हो जाता है। आपको बता दें कि यहां यूपी वाले पुचका की फें्रचाइजी भी है। हालांकि अभी छोटे स्तर पर ही है, लेकिन डिमांड को देखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि जल्दी ही यूपी वाले पुचका की बड़ी-बड़ी दुकानें होंगी। ऐसे में जब हमनें उन्हें खुद के यूपी से होने का बताया और उनके पुचका की तस्वीर लेनी चाही तो वे खुद भी तस्वीर के खांके में शामिल होने लगे। फिर हमनें भी पुचका के साथ यूपी वाले भइया की तस्वीर ले डाली। तो ये तो था पुचका के साथ पहला दिन। आगे बहुत सारी प्लॉनिंग है, देखते हैं क्या-क्या मिलता है सिटी ऑफ जॉय के सफर में......

उसका रूठना