Saturday, August 19, 2017

नदी किनारे .....!


तुम वाकई.....बस श्रृंगार रस के कवि हो, इसलिए भलाई इसी में है कि तुम जिसपर भी कसीदे पढ़ो ,उसे कभी भी गंभीरता से ना लिया जाए......।


नदी किनारे.....!

खुशगवार मौसम था। सामने झर-झर बहती नदी। सूरज धीरे-धीरे ढल रहा था। लड़की नदी में पैर डाले बैठी थी। कभी उसकी लहरों को निहारती तो कभी पानी की छुअन को महसूसती। इस तरह तकरीबन आधे घंटे तक वह नदी के साथ रही। तभी उसकी नजर थोड़ी दूरी पर कॉफी पीते हुए लड़के पर पड़ी। लड़की ने उसे आवाज दी और पूछा.... अरे वहां क्या कर रहे हो? आओ देखो नदी कितनी खूबसूरत लग रही है। कल-कल बहती नदी का संगीत सुनों। इसकी लहरों में जीवन का तमाम सार देखो। जो कभी तेज हो जाती हैं तो कभी बिल्कुल शांत। कितनी आतुर है यह तमाम बातें करने को। तुम सुनों तो सही। कुछ पल का सन्नाटा और अगले पल का जवाब -हम्म। ठहरो....., आता हूं।
........अगले कुछ मिनटों में लड़का और लड़की दोनों ही नदी के किनारे पर थे। लड़की ने चप्पल उतारी और फिर से नदी में पैर डालकर बैठ गई। लड़का, कुछ सकुचाया और दूर ही खड़ा रहा। लड़की ने मुस्कुराते हुए कहा कि यूं ही दूर खड़े रहोगे तो नदी तुमसे बात नहीं कर पाएगी और न ही तुम इसके संगीत को समझ सकोगे। पास तो आना होगा। लड़का मुस्कुराया, बोला पास तो कब से आना चाहता हूं फिर दोनों की निगाहें टकराई। खुद को संभालते हुए दोनों ही अब नदी के साथ थे। बात छिड़ी हमेशा की तरह आंखों से। जी, लड़का जब भी लड़की से मिलता उसकी आंखों पर कसीदे पढ़ता। हालांकि इतनी हसीन भी न थी उसकी निगाहें।
.......लेकिन ये क्या आज तो कुछ अलग सी बात थी। तारीफ नहीं आंखों में नींद भरी सी है, ऐसा लड़के ने कहा। लड़की ने लंबी सांस लेते हुए कहा हां सुकून की नींद जानें कब से नहीं ली। मैं भी सोना चाहती हूं, लंबी नींद में फिर चाहे वो कभी न खुले, ऐसी नींद में।। खैर, अच्छा हुआ इस बार तुमने हमेशा की तरह कोई तारीफ के पुल नहीं बांधे। अरे ! तुम गलत क्यूं समझती हो, आखिरकार मैं श्रृंगार रस का कवि हूं। तो किसी भी खूबसूरत वस्तु या व्यक्ति की तारीफ करने का अधिकार रखता हूं। ओह, अच्छा यह कहकर लड़की खिलखिला उठी।
......पानी से पैर बाहर निकालने की कोशिश में लड़के ने धीरे-धीरे कदम समेटने चाहे। अरे ये क्या कर रहे हो। लड़के ने कहा देखो कितनी गंदगी है इसमें। मिट्टी और कंकड़। लहरों को करीब से देखना है तो किसी बीच पर चलकर देखो। कितना अच्छा लगता है। जब वो पास आकर जाती है तो यूं लगता है जैसे पैरों तले जमीन खिसक रही हो। बहुत रोमांचकारी होता हैं। तुम गई हो कभी किसी बीच पर। लड़की ने कहा, गई तो नहीं लेकिन सुना जरूर है। लड़के ने कहा अच्छा चलोगी मेरे साथ कभी.... थोड़ा रूककर बीच पर। अच्छा... कहकर लड़की मुस्कुराई और बोली हां जरूर। पहले इस लम्हें को तो जी लें। इसके बाद दोनों के बीच कुछ पलों की खामोशी। जो जानें कितना कुछ कहे जा रही थी।
.....लड़की ने पूछा क्या हुआ श्रृंगार रस के कविवर। आप चुप क्यूं हो गए? क्या इस खूबसूरत कल-कल बहती नदी पर कसीदे न पढ़ेंगे। लड़का मुस्कुराया, बोला चलो पानी में कंकड़ डालते हैं। देखते हैं कौन कितनी दूर फेंक सकता है। लड़की ने भी हामी भर दी और शुरू हुआ सिलसिला....आप क्या समझें मोहब्बत का, नहीं कंकड़ फेंकने का। नदी के साथ होकर उसकी ही तंद्रा में खलल डालना लड़की को कुछ भा नहीं रहा था, लेकिन लड़के का साथ देकर खुशी भी थी। और बात भी तो बस इतनी ही थी, हर पल जीने की। एक के बाद एक दोनों ने नदी में कंकड़ फेंके। कभी लड़की का कंकड़ दूर जाता तो कभी लड़के का। हालांकि इसमें हार-जीत पर कोई इनाम नहीं था लेकिन खेल का अपना ही मजा था। लड़की की मुस्कुराहट न सिर्फ होठों पर थी, बल्कि दिल की गहराईयों से वो खिलखिला रही थी।
      सुनों, कुछ बोलोगी नही। लड़की ने पूछा क्या बोलूं। लड़के ने कहा मैं चाहता हूं जब तुमसे मिलूं तो चांद-तारों की बात हो। महकती फिजाओं की बात हो। बरसती घटाओं पर बात हो। छिटकती चांदनी की बात हो। तुम कुछ कहो तो सही। बातें तो तमाम हैं। लड़की ने कहा कि फिर तुम ही कहो। बात शुरू हुई मोहब्बत पर। क्या है बला। लड़के ने जवाब दिया कि जब आप खुद को भूलकर किसी और को जीने लगें वो है मोहब्बत। जब आप उसकी खुशी और गम को महसूस करने लगें तब समझिए इश्क हो गया है आपको। अरे-अरे रूको जरा। बस बहुत हुई मोहब्बत की परिभाषा, इससे भली तो दोस्ती है। कम से कम दोनों अपने-अपने वजूद के साथ एक-दूसरे के साथ होते हैं और उनके अहसास को जीते हैं। लड़का मुस्कुराकर बोला मेरी आंखों में देखो। दोनों ने ही एक पल के लिए एक- दूसरे की आंखों में देखा फिर कुछ पल का सन्नाटा। सूरज पूरी तरह से ढल चुका था। शाम अब रात के आगोश में थी।
.......दोनों ने नदी से पैर बाहर निकाले और चलने को हुए तभी लड़की ने कहा कि दोस्ती में प्रेम नहीं होना चाहिए। हम्म, लड़के ने हामी भरी और गहरी सांस लेते हुए बोला कि जो जैसा है उसे बांधों मत, बहने दो पूरी तरह से नैसर्गिक रहने दो, बिल्कुल इस नदी के जैसे। जिसका संगीत तुम्हें अपनी ओर खींच लेता है। जिसकी कल-कल करती लहरों पर तुम्हारी नजर ठहर जाती है। जिसके साथ तुम तन्हाई को जीती हो।
.......लड़की मुस्कुराते हुए बोली हम्म। समझ रहीं हूं .....क्या समझ रही हो? अरे यही कि तुम वाकई श्रृंगार रस के कवि हो। तो किसी भी बात को गंभीरता से न लिया जाए..... हाहाहाहा दोनों हंसने लगे....... तभी लड़की ने कहा कि अगर तुम सच में ये कह रहे होते..... तो शायद......शायद.... मुझे तुमसे मोहब्बत हो जाती। लड़के ने गौर से लड़की को देखा फिर से एक सन्नाटा पसरा और दोनों खामोश चलते हुए नदी से काफी दूर निकल गए।

उसका रूठना