अरे ! मेरे चाँद ने आज पूरी रात आसमां के चाँद के साथ बिताई। उसके साथ रात का सफर कैसा रहा बेगम साहिबा? नज़मा खिलखिलाकर हँस दी, जी शौहर साहब शब्दों में बयां करू या मेरी निगाहों में पढ़ लेंगे आप। कहिये किस मानिंद कहूं। अजी हम तो आपकी आवाज के कायल हैं। वरना निगाहें काफी है सबकुछ समझाने को। लेकिन बेगम साहिबा ये आपके हाथों में डायरी कैसी? आज से पहले तो कभी नही देखी। बड़ी खूबसूरत है। छिपाकर रखा था आपने? डॉन की लाल डायरी को।। अरे अरे माफ़ कीजियेगा गुलाबी डायरी को। सुहैल से नज़रे चुराते हुए नज़मा ने कहा आपसे क्या छिपाना और क्यूं? चलिये कॉफी पीते हैं, वरना बातों के चक्कर में ये बेचारी ठंडी हो जायेगी और आपके दफ्तर जाने का वक़्त भी हो जायेगा। डायरी की बात पर नज़मा का जवाब सुनके सुहैल समझ चुका था, कि इसपर ज्यादा बात की तो उसे नज़मा की चुप्पी का सामना करना पड़ेगा। ये रिस्क तो वह कतई नहीं ले सकता था।
दोनों की कॉफी खत्म हो चुकी थी। लेकिन नज़मा के लिए तो कॉफी के साथ ही एक और जद्दोजहद शुरू हो चुकी थी। क्यूंकि घड़ी में नौ बजे थे और सायरा के साथ उसकी मुलाकात 11 बजे मुकर्रर थी। यानि कि दो घंटे बाद। इस वक़्त में उसे सुहैल का ब्रेकफास्ट और लंच दोनों ही तैयार करना था। हालांकि उसे इस बात की फिक्र ज्यादा थी कि वो क्या कहेगी सायरा से और कैसे समझाएगी उसे?
इसी दौरान सुहैल नज़मा की हेल्प करने किचन में पंहुचा। दसअसल ब्रेकफास्ट बनाने में उसकी दिलचस्पी नज़मा के साथ वक़्त बिताने के चलते थी। लेकिन उसे चुप देखकर सुहैल ने कॉफी मग नीचे गिरा दिया। उसके टूटने की आवाज पर नज़मा की भी तन्द्रा टूट गई। अरे शौहर साहब आप रहने दीजिए हम समेट लेते हैं, आपके हाथ में कहीं चुभ न जाये। तभी उसने नज़मा का हाथ पकड़ लिया और बोला - आपके दिल में जो भी है उसे कह क्यूं नहीं देती? क्यूं आप टूटती जा रहीं हैं। नज़मा पांच साल हो गए हैं हमारे निकाह को। आपके दिल में न सही पर क्या दिमाग में भी हम जगह नहीं बना पाए। पति न सही पर क्या दोस्त भी नहीं बन पाए हम। क्यूं आप यूँ चुप हो जाती हैं। पूरा- पूरा हफ्ता बीत जाता है आपकी ख़ामोशी टूटती ही नहीं। आपने सोचा है कभी हमपर क्या गुज़रती है। जब शाम की कॉफी हम साथ होते हुए भी अकेले अकेले पीते हैं। आपसे काम का जिक्र न हो तो आप तो चुप ही रहती हैं। और कभी इस कदर हमपर मेहरबान हो जाती हैं जैसे पूरी कायनात में आपसे बेहतर हमें कोई समझता ही न हो।
....बेगम साहिबा जिस नज़मा से हमारा निकाह तय हुआ था, वो तो ऐसी न थी। वो तो जिंदगी का हर लम्हा हँसते-खेलते जीती थी। उसके आस-पास तो हवाओं में भी खुशियां महकती थी। पहली बार जब आपको देखा तो फिदा तो हुआ ही था। लेकिन रश्क भी हुआ था आपसे, कि कोई कैसे हर पल मुस्कुरा सकता है। फिर खाला ने बताया कि मुस्कुराहट ही नहीं आपको गला भी बहुत खूबसूरत दिया है अल्लाहताला ने। गाने को कौन कहे हम तो आपकी खनकती आवाज को भी तरस जाते हैं। आपके दिल में जो भी हो कह डालिये। यकीन मानिए हमारे बीच कुछ न बदलेगा। कल से देख रहा हूँ आप फिर परेशां हैं। कई बार जानने की कोशिश की लेकिन आपके खामोश हो जाने के डर से कुछ पूछने की हिम्मत नहीं कर पाया। पर अब और नही आपको बताना ही होगा। आखिर कौन सा दर्द आपको अंदर ही अंदर खाये जा रहा है।
...सुहैल का हाथ पकड़कर नज़मा ने कहा शौहर साहब ज़रा घड़ी तो देखिए पूरे दस बज चुके हैं। आपके दफ्तर जाने का वक़्त हो चुका है। आप लेट हो जाएंगे और हम अभी तक आपके लिए कुछ न बना सके। चलिये आप रेडी हो जाइये और हम अब लंच तैयार किये देते हैं। क्यूंकि ब्रेकफास्ट का वक़्त तो आपकी बेवजह की बातें ले गईं। सुहैल समझ चुका था कि लाख जतन के बाद भी उसे कोई जवाब नहीं मिलेगा,सिवाय ख़ामोशी के। किचन से निकलते वक़्त वो सिर्फ इतना ही कह पाया कि जब भी तुम ये सोचो कि मुझसे इस विषय पर बात की जा सकती है तो बेबाकी से कह देना। इस बात का एहतराम रखते हुए कि हमारा रिश्ता कमजोर नही पड़ेगा।
...कुछ ही देर में नज़मा ने लंच का डिब्बा सुहैल को कार में पकड़ाया और बाय बोलकर खुद तैयार होने चली गई। आज तो उसे हर हाल में ऑफिस जल्दी पहुँचना था। इसलिये नही कि सायरा की काउंसलिंग करनी थी बल्कि इसलिए कि आज उसे भी सारे सवालों के जवाब मिलने थे। पांच बरस की तकलीफ से निजात पानी थी। आज तो उसे आज़ादी मिलने वाली थी। मोहब्बत की बात से, उसके अहसास से, पाने की चाहत से और खोने की तकलीफ से। आज फैसला करने की उसकी बारी थी। आँखों में आँसू जरूर थे लेकिन जेहन में सुकून था।
...फिर क्या था नज़मा ने कबर्ड से सफ़ेद मलमल का कुर्ता निकाला। उसपर गुलाबी सिल्क की चुन्नी डाली। आँखों में काजल और होठों पर लिपस्टिक। हाथों में गुलाबी रंग के कंगन पहने, जो बरसों से ड्रेसिंग टेबल की रैक में सजे थे। खुद को आईने में देखा और मुस्कुराकर कहा-अल्लाह क्या बला की खूबसूरत लग रही हूँ। अगर इस तरह सुहैल साहब देख लेते तो जाने क्या-क्या कुर्बान जाते। खैर ये रूप और श्रृंगार किसके लिए ? ये सब तो रेहान के साथ हुई आखिरी मुलाकात में ही खत्म हो गया था। कुछ बचा था अगर मोहब्बत के नाम पर तो वो गुलाबी डायरी ही थी। जिसमें दर्ज थे उसके अहसास। हालांकि उन्हें भूलना आसान नही था। लेकिन याद रखना सुहैल के साथ नाइंसाफी जैसा लगता था।
...अलार्म बज उठा। हां नज़मा ने ही लगाया था साढ़े दस बजे का। ताकि बीते वक़्त में वो अगर गुम हो जाये तो घड़ी उसे बाहर निकाल लाये।।। मुस्कुराती हुई नज़मा चलने को तैयार हुई। आईने में खुद को फिर से निहारा। नज़र का काला टीका लगाया और एक खत सुहैल के स्टडी टेबल पर रखकर दफ्तर के लिए निकल गई। केबिन में बैठे हुए बमुश्किल दो मिनट ही बीते कि ऑफिस बॉय राजू ने बताया कि कोई सायरा मैडम आई हैं। हाँ ठीक है उन्हें भेज दो और जरा दो स्ट्रांग कॉफ़ी भी ले आना। जी मैडम जी, कहकर राजू चला गया और सायरा केबिन के अंदर। नज़मा ने पूछा कैसी हो अब? जी बेहतर। दवाइयों से नींद तो दे दी आपने, लेकिन सुकून कैसे लौटायेंगी? मुस्कुरा रही थी नज़मा और बोली कि कौन सा ?दूसरी औरत होने का! कहकर हँस पड़ी।
....तभी राजू पहुंचा, दो कॉफी लेकर। मैडम जी कॉफी। हाँ रख दो और ख्याल रहे जब तक मैं आवाज न दूँ किसी को अंदर मत आने देना। जी बिल्कुल। नज़मा ने कहा कॉफी पी लो। तब तुम्हें आसानी से मेरी बात समझ आयेगी। देखो सायरा, इस ज़माने ने दूसरी औरत को कभी औरत समझा ही नहीं। उसके जज़्बात, उसके अहसास, उसकी तकलीफ और उसके त्याग को कभी तवज्जो नहीं मिली। उसके लिए प्रेम बना ही नहीं। और अगर प्रेम की बात कर भी ली जाये तो वह केवल बंद कमरे में दैहिक सुख तक सिमट जाती है। समाज के सामने उसे स्वीकारना, इज़्ज़त देना ये सब बेमानी बातें कही जाती हैं। कई बार तो समाज के डर से पहचानने तक से इंकार कर दिया जाता है। फिर देती रहो तुम अपनी मोहब्बत की दुहाई। तुम्हारे दामन में तो कांटे ही गिरेंगे। क्यूंकि फूल पर तो पत्नी का अधिकार है। तुम तो दूसरी औरत हो।
....हाँ दूसरी औरत। वही जो इस बात का ख्याल रखती है कि उसके चलते उसकी मोहब्बत रुसवा न हो। वही दूसरी औरत जो बीवी तो नहीं लेकिन उसका श्रृंगार बस उसके प्रेम के ही नाम का। वही दूसरी औरत जिसका मुस्कुराना, हँसना, खिलना और महकना सब उसकी मोहब्बत के नाम का। लेकिन उसकी चाहत और तकलीफ का किसी के लिए कोई मोल नहीं। कुछ समझी सायरा, या अब भी तुम आसिफ के लिए पूरी जिंदगी तबाह कर देना चाहती हो। उसकी आँखों से आंसू बहते ही जा रहे थे। लेकिन नज़मा ने थामने के बजाय कहा कि खुद के त्याग और समपर्ण के लिए जितना भी रोना हो, रो लो। पर आज ही वादा कर लो कि तुम्हारी ख़ुशी, तुम्हारे गम और जिंदगी का हर अहसास केवल तुम्हारे खुद के लिए होगा। किसी और के लिए तुम इनका सौदा नहीं करोगी। केवल खुद के साथ और खुद के लिए जियोगी। किसी आसिफ की राह नहीं तकोगी। किसी भी बंधन में नहीं बंधोगी और नहीं बनोगी दूसरी औरत।
.... सायरा केबिन से जाने के साथ ही दूसरी औरत के किरदार को भी छोड़ आई थी। अब नज़मा की बारी थी। उसने हेड ऑफ़ डिपार्टमेंट को रिजाइन लेटर मेल किया। कार की चाभी उठायी और निकल पड़ी अपनी आज़ादी की ओर। कभी पीछे न मुड़ने के लिए। उधर सुहैल दफ्तर से घर पहुँच चुका था लेकिन नज़मा का कुछ पता न था। उसने कॉल की तो नंबर नॉट रीचेबल आ रहा था। तो कॉफी बनाकर स्टडी रूम का रुख किया। सोचा काम में फंस गई होगी। या कुछ देर अकेले रहना चाहती होगी। सुबह मैंने भी जाने क्या-क्या कह दिया। सुहैल इन्ही ख्यालों में खोया था कि अचानक उसकी नज़र टेबल पर रखे खत पर पड़ी। उत्सुकतावश उठाया और बोल उठा लगता है बेगम साहिबा ने खत में इज़हार-ए-मोहब्बत की है। अगले ही पल कमरे में अजीब सी ख़ामोशी और सुहैल की आँखे नम।
शौहर साहब,
वो कोई और न था चंद ख़ुश्क पत्ते थे,
शजर से टूट के जो फ़स्ल-ए-गुल पे रोए थे।
अभी अभी तुम्हें सोचा तो कुछ न याद आया,
अभी अभी तो हम एक दूसरे से बिछड़े थे|
...सच कहा था आपने कि कुछ तो है जो हमें खत्म कर रहा है। अंदर ही अंदर खाये जा रहा है। हाँ है, एक सच। जिससे भागने की नाज़ हाँ नाज़ (ही पुकारते थे वो हमें।) ने बहुत कोशिश की। लेकिन भाग नहीं पाई। हालांकि आपकी मोहब्बत में भी कोई कमी न थी। साथ था, विश्वास था और सबसे अहम् इज़्ज़त थी हमारे लिए। लेकिन जब इश्क का रोग लग जाये तो ये सब कहाँ भाते हैं। यकीन मानिए हमनें निकाह के वक़्त ही आपको अपनाने का वायदा किया था खुद से। डायरी भी तो बंद कर दी हमेशा के लिए। लेकिन ये इश्क और मुश्क कहाँ छिपते हैं। मेरी क्लाइंट के रूप में जब मेरा अतीत सामने आया तो पूरी तरह से हिल गए थे हम। खुद को सँभालने की भी कोशिश की लेकिन आज सुबह आपके सवालों ने झकझोर दिया हमें। जाने क्यूं ऐसा लगा कि हम आपको धोखा दे रहे हैं। आपने हमसे मोहब्बत की तो इसमें आपका क्या कसूर। हम बेगम हैं आपकी, हक़ है आपका हमपर। लेकिन हमारी रूह पर भी हमारी पाक मोहब्बत का नाम है। उस मोहब्बत का जिसके लिए हम दूसरी औरत हैं। दिल को छलनी कर देने वाले इस शब्द से आज हम सायरा को आज़ादी दिला देंगे। फिर सोचा खुद को इस दलदल से बाहर क्यूं नहीं निकाल लेते? तभी ये फैसला लिया कि सबको आज़ादी मिलनी चाहिए। हमारे साथ आपको भी। जी अब आप हमारे लिए सुहैल मियां हैं। और हम जा रहे हैं जिंदगी को अपने लिए जीने। क्यूंकि जिससे मोहब्बत की उसके अल्फाज़ो में तो हम उसकी जिंदगी थे। लेकिन हकीकत में केवल दिल बहलाने और उसके जिंदगी के खालीपन को भरने का जरिया थे हम। अफ़सोस जब तक हमें ये समझ आया तब तक हम उसकी जिंदगी की दूसरी औरत बन चुके थे। और सुहैल मियां आप तो जानते हैं कि हम हमेशा प्रायोरिटी में रहना पसन्द करते हैं। बस फिर छोड़ दिया नाज़ ने उनका साथ और हमेशा के लिए नज़मा बनकर ही रह गई। और गुलाबी डायरी में बंद कर दिया मोहब्बत का अतीत। जानती हूं आपको ये सब पढ़कर तकलीफ होगी। लेकिन अब हम हर बंधन से आज़ाद होकर अकेले जीना चाहते हैं। खुद के लिए, जिंदगी की हर ख़ुशी को महसूसना चाहते हैं। हो सके तो माफ़ कर दीजियेगा और अपनी लाइफ में भी आगे बढ़ जाईयेगा। अल्लाह आपपर हमेशा मेहरबान रहे।
आपकी
नज़मा।।