Sunday, January 8, 2017

कब लौटोगे.....?


शेखर, ये क्या कहा तुमनें कि तुम मुझसे रूठकर चले जाओगे। तुम ऐसा कैसे बोल सकते हो? अरे तुम तो रोने लगी, क्या हुआ वृंदा मैं तो मज़ाक कर रहा था। तुम ही तो कहती हो मेरे पास तुम्हारे लिए चाय के अलावा वक़्त ही नही होता और तुम्हारी बेपनाह मोहब्बत तुम्हें नाराज भी नही होने देती तो सोचा मैं ही रूठ जाता हूँ। बस यूँ ही कह दिया। देखो रोना मत प्लीज मुझे माफ़ कर दो.....अब मुस्कुरा भी दो मेरी बेटर हाफ..... शेखर मैंने कहा था न मज़ाक में भी ऐसी बातें नही करते। उस दिन तुमनें इसे हँसी-ठिठोली में कहा था। आज तुम्हें देखे हुए इतना वक़्त गुज़र गया। तब तुमने कहा था वृंदा तुम्हारी आँखों में अश्क मुझसे देखे नही जाते। आज तुम्हारे साथ बिताया हुआ एक -एक लम्हा मुझे तड़पाता है। तुम पलभर के आँसू बर्दाश्त नही कर पाए थे। आज तो ये थमते नही। क्या सोचकर मुझे यूँ तन्हा छोड़कर गये हो...शेखर तुम्ही तो कहते थे न कि इस दुनिया में साथ आये नहीं तो क्या, जायेंगे तो साथ ही। फिर वो वादा क्या हुआ.....? तुम्हारे साथ कल बहुत खूबसूरत था, आज बहुत रुलाता है। भीड़ में भी ये मुझे तन्हा कर जाता है। बताओ शेखर, जब लौटोगे तो मुझे तुम्हारे इंतज़ार में काटे गए ये पल लौटा पाओगे? क्या वापस कर सकोगे मुझे वो ख़ुशी जो इतने वक़्त में मैंने नहीं जी? जवाब दो, बोलो न... मेम साहब क्या हुआ आपको। सुनिये तो सही, चाय बन गयी है ले आऊं क्या ? क्या-क्या हुआ विमला? कुछ नही आपने ही तो कहा था चाय पीने के लिए, कब से पूछ रही हूँ, आप कुछ बोल ही नही रही थी। न जाने क्या और किसके लौटने की बात कह रही थी । ओह, अच्छा हाँ, क्या चाय पूछ रही थी। हाँ ले आओ दो कप। जी दो कप! हाँ , अच्छा वो जो आप सामने रखकर चाय पीती हैं।। यह कहकर विमला चाय लेकर आ जाती है और वृंदा एक कप अपने हाथ में लेती है और दूसरा टेबल पर रखकर, नम आँखों से मुस्कुराते होंठो पर चाय की प्याली लगाते हुए मन में ही कहती है-'जानती हूँ, मुझे लिए बिना तो नहीं जाओगे, लेकिन आओगे कब?' इतना तो बता दो फिर उस मियाद के सहारे पूरी ज़िंदगी इंतज़ार कर लूंगी.....।।।   इसके बाद विमला खाली कप ले जाने को आती है और वृंदा दूसरे कप को सामने ही रखे रहने की बात कहकर अपना कप पकड़ा देती है। फिर खो जाती शेखर के साथ बिताये हुए ख़ुशी के लम्हो में।

Thursday, January 5, 2017

...तुम्हारी जागीर नहीं

मैं तुम्हारी जागीर नहीं.. तुम्हारी बातें तुम्हारे खत पढ़ने को मजबूर नहीं, सुनों, मैं तुम्हारी जागीर नहीं।। तुम रियासतों के मालिक हो तो रक्खो अपनी धरती तमाम, मुझे मेरी तकलीफों में ही मसर्रत है।। तुम्हारे दरबार में होंगे हज़ारों कारिन्दे, मेरा सर अपनों के दर पर झुका ही सही।। तुम होंगे नवाब ख्यालों के, होगी तुम्हारी ये कायनात, मेरे तो ख्वाबों की भी मुझपर तासीर नहीं,मैं अकेली ही सही।। सुनों, मैं तुम्हारी जागीर नहीं।। तुम जब चाहो तो मैं मुस्कुराऊँ, तुम जब चाहो तो मैं तुम्हारी हो जाऊ, नहीं ऐसा तो तुम्हारा मुझपर कोई अधिकार नहीं।। सुनों, मैं तुम्हारी कोई जागीर नहीं।।।

उसका रूठना