Wednesday, June 20, 2018

तिलाजंलि तुम्हारे प्रेम की....


तुमसे ही ख्वाब थे मेरे, तुमसे ही रातें थी, तुमसे ही सुबहें थीं और तुमसे ही तमाम बातें थीं।
फिजा में तुम थे, खिजा में तुम थे, सांसों में तुम थे, मेरी रूह तक भी तुम थे।
तुमको रूखसत खुद मैंने किया लेकिन कहां मालूम था कि जानें से पहले तुम मुझसे मुझको ही छीन जाओगे।
सोचा था ये नाराजगी भरा अलविदा मुझे सुकून देगा आखिर मैंने ही तुमसे आजादी चाही थी।
लेकिन पता नहीं था कि अब खुशी है कोई रूलाने वाला हमनें अपना लिया है हर रंग जमाने वाला....
तुम्हें तल्खी भरे अलविदा के साथ ही मेरे भीतर पलने वाली प्रेम की हर पंखुड़ी अब सूखने लगी है।
अब थोड़े ही वक्त में यह खत्म हो जाएगी और फिर प्रेम का कोई भी बीज मेरे अंदर पल्लवित और पुष्पित नहीं होगा।
क्यूंकि तुम्हें रूखसत करने के साथ ही अब मैं इस प्रेम की भी तिलाजंलि चाहती हूं।
जीऊगीं जरूर लेकिन तुम्हारी यादों के घुटन के साथ नहीं, तुम गए हो तो इसे भी ले जाओ
ताकि गाहे &&गाहे तुम्हारी बातें यादों में भी मेरा सुकून छिने....
और तुमसे जुड़ी कोई बात, अहसास मुझे याद रहे और प्रेम के लिए बस इतना कहूंगी कि ईश्वर ये भाव मुझमें फिर जागृत करें.....
अब केवल तिलाजंलि है.....तुम्हारी, तुम्हारी बातों की...
तुम्हारी यादों की और तुम्हारे प्रेम की......

उसका रूठना