Tuesday, January 30, 2018

डायरी के पन्नों से मेरी पहली कविता वर्ष 2010

ये जिंदगी भी हाय! कितना हमें सताये,
जब गम थे बहुत ज्यादा, हम और मुस्कुराए।।
ना जान सका कोई, न कोई समझ पाए,
ये राज है कुछ ऐसा, जिसे कोई हमराज ही समझ पाए।।
पर उसको भी यारों अब वक्त कहां इतना,
जो वो पास आये और अश्क समझ पाए।।
फिर भी ये नैन देखे उसी का रास्ता,
यह दिल पुकारे, उसको दे मोहब्बत का वास्ता।।
उनके सहारे देखे हमने ख्वाब कुछ अजीज थे,
दिल के मेरे हमराज वो , मेरी आखिरी उम्मीद थे।।
वो थे आरजू, जुस्तजू, मेरी तकदीर थे,
दिल के कोने में बसी थी कभी जो, वो मेरे इश्क की वही तस्वीर थे,
जो बन के मिट गई थी हाथों से मेरे, वो वही लकीर थे।।
हम जानते थे ये है दस्तूर जिंदगी का,
फिर भी न जानें क्यूं सपने थे कुछ सजाए।।
ये जिदंगी भी हाय! कितना हमें सताये,
जब गम थे बहुत ज्यादा, हम और मुस्कुराये, हम और मुस्कुराए, हम और मुस्कुराये.......

11 comments:

उसका रूठना