Sunday, January 21, 2018

आज फिर पतझड़ की बात हुई बसन्त से...
... फिर उसने बयां किये अपने जज़्बात। 

कुछ बातें वो पूरी कह गया कुछ के थे बंद अल्फाज़..
 ...बसन्त ने खोला फिर पतझड़ का राज और पढ़ने लगा उसका वो पत्र बेहद खास....💐

सुनों प्रिये ,

मैं आज दुखी हूं, जाना होगा सबसे दूर

किंतु ये सोचकर मुस्कुराता हूं कि तुम आये तो लाओगे सबके उदास चेहरों पर खुशियाँ।
....भर दोगे दामन खुशियों से, हर ओर बिखेरेगी तुम्हारी रंगत।

कही सरसों के खेत लहलहायेंगे तो कही फूलों पर बिखरेगी मुस्कान।।

ये धरा खिलखिला उठेगी अब....महक उठेंगी दिशाएं।

पक्षियों के कलरव का गुंजेगा तराना.....तुम्हारे स्वरों का जब निकलेगा खज़ाना।

कि पपीहे पी को पुकारे हैं अपने बागों में,

मयूर मस्त होकर नाचता है बागों में,

बहारों फूल बरसाओ कि फिर बसन्त आया है।।

अब मेरी कोई जगह नहीं..….

मैं जा रहा हूं बसन्त मित्र

....अब अगले बरस ही आऊंगा।

तुम रखना सबका ख्याल..

और बिखेरना अपनी रंगत।
सुनों, मित्र किसी के आने से खुशी और जाने से गम तो स्वाभाविक है लेकिन
......मेरे जाने से तुम निराश मत होना
क्यूंकि जब मैं जाऊंगा

तब ही तुम आओगे अपनी रंगत लेकर।।

मेरे जाने के बाद ही तो तुम महका सकोगे सबका दामन

बिखरेगी तुम्हारी खुशबू।।

2 comments:

  1. zabardast, bahut khoob. kahi pant to kahi nirala ji ki yaad aa gayi.

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  2. पांडेय जी, आभार आपका उत्साहवर्धन के लिए। लेकिन रचना की तुलना इतने उच्चकोटि के कवियों से...
    मुझे लगता है कि मैं सीखने की सतत प्रक्रिया की पहली पंक्ति में खड़ी हूँ।,🙇

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उसका रूठना